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गाथा : ३७
लोकसामान्याधिकार
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प्रवर प्रवरपरीतस्योपरि एकादिके वृद्ध े सति भवेन्मध्यं जघन्यपरीतमेकैकरूपेण विश्सम्य सवेध जधन्यपरिमित रूपं प्रति दवा संगुलिते ॥ ३६ ॥
प्रवरं जघन्ययुक्तासंख्यं स्यात् । एतवेबायलिसदृशं । तवेष रूपानं परिमितासंख्तवरं प्रावसिकृतिः द्विकवाशसंख्यातजघन्य सदेव विगतरूपं बेत युक्तासंख्यातोत्कृष्ट स्यात् ॥ २७ ॥
अब इसी प्रमाण को मानकर असंख्यात और अनन्त की उत्पत्ति एवं उनके भेद - प्रभेदों को मोह गाथाओं द्वारा कहते हैं।
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गावार्थ :- जघन्यपरीतासंख्यात के ऊपर एक आदि अङ्क की वृद्धि हो जाने पर मध्यमपरीतासंख्यात होता है। जधन्यपरीतासंख्यात का विरलन कर प्रत्येक एक अंक पर उसी जधन्यपरीतासंख्या को देय देकर परस्पर गुणा करने से जधन्ययुक्तासंख्यात प्राप्त होता है जो आवली सदृश है । अर्थात् आवली के समय जघन्ययुक्तासंख्यात प्रमाण हैं। इस प्रमाण में से एक अंक कम कर देने पर उत्कृष्टपनासंख्यात प्राप्त है। आवलो प्रमाण जघन्यमुक्तासंन्यास काय करने से जघन्य असंख्यातासंख्यात का प्रमाण आता है, और इसमें से एक अंक कम कर देने पर उत्कृष्टयुक्तासंख्यात प्राप्त हो जाता है ।। ३६ ।। ३७ ।।
विशेषार्थ : --
५. मध्यमवरीला संपात : - जघन्यपरीतासंख्यात से एक आदि अङ्क द्वारा वृद्धि को प्राप्त तथा उत्कृटपरीता संख्यात से एक अंक हीन तक के जितने विकल्प हैं, वे सब मध्यमपरीतासंख्यात है ।
६ उत्कृष्टपरीता संपात : --- जघन्य युक्तासख्यात में से एक अंक कम कर देने पर उत्कृष्ट परीत संख्यात प्राप्त होता है ।
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७ जघग्ययुक्तासंख्पात : - जधन्यपरीतासं ख्यात का विरलन कर प्रत्येक एक एक अङ्क पर जघन्यपरीतासंख्यात ही देय देकर परस्पर गुणा करने से जो लब्ध प्राप्त हो उतनी संख्या प्रमाण जघन्ययुक्तासंख्यात प्राप्त होता है, जो आवली सदृश है। अर्थात् जघन्ययुक्का संख्यात की जितनी संख्या है उतने समय की एक आवली होती है। जैसे - मानलो :- अंक संदृष्टिमें जघन्यपरीतासंख्यात: है, अतः जधन्यपरीता संख्यात (८) का विरलन कर उसी को देय देकर परस्पर गुणा करने से ( ६६६ १६७७७२१६ ) अन्ययुक्तासंख्यान का प्रमाण हुआ। अथवा -- जघन्यपरीतासंख्यात = जघन्ययुक्तासंख्यात । ( जघन्यपरीता संख्यात ) |
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६ मध्यमयुक्का संख्यात:- जघन्ययुक्तासंख्यात से एक अधिक और उत्कृष्टयुक्तासंख्यात से एक कम करने पर जितने विकल्प बनते हैं वे सब मध्यमयुक्तासंख्यात हैं ।
६ उरकृष्ट पुस्तासंख्या :- जधन्य असंख्याता संख्यात में से एक घटाने पर जो प्राप्त होता है, वह उत्कृष्टयुक्तासंख्यात का प्रमाण है ।
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