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गाथा : ३४-३५
लोकसामान्याधिकार खाली कर दिया जायगा तथा जिस द्वीप या समुद्र को सूची व्यास सदृश अनवस्था कुण्ड बन चुका है उससे आगे के द्वीप समुद्रों में एक एक दाना डालते इये जहां सरसों पुनः समाप्त हो जायं वहाँ से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त नवीन अनवस्था कुण्ड बना कर भरा जायगा तब एक दाना पालाका कुण्ड में डाला जायगा । पुन: उस नवीन अनवस्था कुण्ड के सरसों ग्रहण कर आगे आगे के द्वीप समुद्रों में एक एक दाना डालते हुए जहाँ सरसों समाप्त हो जाय, उतने व्यास वाला अनवस्था कुण्ड जब भरा आयगा तब शलाका कुण्ड में एक दाना और डाला जाता । इस प्रकार करते हुये जब पुनः नवीन नवीन वृद्धिंगत ध्यास को लिये हुये प्रथम अनवस्था कुण्ड को सरसों के प्रमाण बराबर नवीन अनवस्था कुण्ड बन त्रुकेंगे तब शलाका कुण्ड भरेगा, और दूसरा दाना प्रतिशलाका में डाला जायगा। अयैवं सत्याप किमित्यत्राह---
एवं मावि य पुण्णा एग णिविखव महासलागम्हि । एमात्रि क्रमा भरिदा बचारि मरति सकाले ।। ३४ ।। चरिमणद्विदकुंडे सिद्धन्धा जतिया पमाणं तं । अरपरीतमसंखं रूऊणे जैट्ट संखेज्जं ॥ ३५ ॥
एवं सापि च पूर्णा एक निक्षिप महाशलाकायाम् । पषापि क्रमामृता चत्वारि भ्रियन्ते तत्काले ॥ ३४ ।। चरमानव स्थितकुण्ड सिद्धार्थाः यावन्ति प्रमाणं तत् ।
अवरपरीनमसंन्यं रूपाने ज्येष्ठ संम्येयम् ।। ३५ ॥ एवं मा। एवमेव सापि च पूर्णति एक निक्षिपतु' महाशलाकाकुण्डे एषापि मामृता तस्मिनेष काले चत्वारि कुण्डानि भ्रियन्से ॥ ३४ ॥
परिम। परमानयमित सिमाः पावम्ति प्रमाणानि तस्वरपरीतासंख्यं । तत्र से कने म्ये संख्येयम् ॥ ३५ ।।
इस प्रकार करते हुए क्या होगा ? उसे कहते हैं :--
गापार्य :-इस प्रकार जब प्रतिशलाका कुण्ड भी भर चुकेगा तब एक दाना महाशलाका कुण्ड में डाला जायगा । क्रम से भरते हुये जब ( जितने काल में । ये चारों कुणा भर जायेंगे तब अन्त में जो अनबस्थित कृण्ड बभेगा उसमें जितने प्रमाण सरसों होंगे, वही जघन्यपरीतासंख्यात का प्रमाण होगा, इसमें से एक कम करने पर उत्कृष्ठ संख्यात का प्रमाण प्राप्त होता है ॥३४॥३५।।
विशेषार्थ :-इस प्रकार बढ़ते हुये कम से जितने सरसों प्रथम अनवस्था कुण्ड में थे, उसके वर्ग प्रमाण जब अनवस्था कृषड बन चुकेंगे, तब शलाका कुण्ड उतने ही सरसों प्रमाण वार भरेगा तब एक बार प्रति शलाका कुण्ड भरेगा और एक दाना महाशलाका में डाला जायगा। इस प्रकार
१ निक्षिप (२०); निक्षिप्य (प.)।