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पिलोकसार
गाथा: ३३ गहराई १००० योजन है
माना हुआ दूसरी वार बनवस्था कुण्ड:
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३१३६५१८७५........ वर्ग योजर र फल २०४५ लार यो-न्याह... १५........... धन योजन धनफल /
प्रथम कुण्ड के सदृश इस कुण्ड की शिखा का भी क्षेत्रफल निकालना चाहिये, तथा इस पर को भी शिखा सहित गोल सरसों से भरना चाहिये । यतः दश नम्बर तक दूसरी वार बनवस्था कुण्ड बन चुका है, अतः ग्यारहवें नम्बर से एक एक दाना एक एक द्वीप समुद्र में डालते हये जहां सरसों समाप्त हो जाय वहाँ से जम्बूद्वीप पर्यन्त व्यास वाला और १००० योजन गहराई वाला तीसरा अनवस्था कुण्ड भर कर पालाका कुण्ड में तीसरा सरसों का दाना डाल देना चाहिये। अर्थवं कृतेपि किमित्यत्राह
एवं सलामभरणे स्वं णिक्खिषदु पडिसलागम्हि । रितीकदेवि भारदे अवरेगं पडिसलागम्हि ॥ ३३ ॥ एवं शलाकाभरणे रूपं निक्षिपतु प्रतिशलाकायाम् ।
रिक्तीकृतेपि भृते अपरक प्रतिशलाकायाम् ।। ३३ ।। एवं। एवमेव ालाकाभरणे रूप ( एकं ) निक्षिपतु प्रतिशलाकाकुण्डे रिक्तीकृतेपि मृते सति अपरक निनिपतु प्रतिशलाका कुन्डे ॥३३ ॥
इतना कर लेने पर आगे क्या करना है, उसे कहते हैं :
पापा:-इसी क्रम से बढ़ते हुए जब शलाकाकुण्ड भर जाय तब एक दाना प्रतिशलाका कुण्ड में डालना और शलाकाकुण्ड को खाली करके पूर्वोक्त प्रकार ही पुनः उसे भर कर प्रतिशलाका कुण्ड में दूसरा वाना झालना चाहिए ॥ ३३ ॥
विशेषार्ष:-इसी प्रकार बढ़ते हुये व्यास के माथ हजार योजन गहराई वाले उतने वार अवस्था कुपड बन जाय, जितने कि प्रथम अनवस्था कुण्ड में मरसों थे, तब एक वार झालाका कण्ड भरेगा। एक बार शलाका कुन भरेगा तब एक सरसों प्रतिशलाका कुण्ड में डालकर शलाका कुण्ड