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________________ वासना -7- १९ को वेध (३४) से गुणित करने पर अर्धगोलक के तोसरे भाग का पन चल (xsxs) प्राप्त होता है। पूर्ण गद के इस प्रकार के छह भाग होते हैं। जबकि अगेिंद के एक विभाग का अनफल (2x3x10-३ तब पूर्ण गोलगेंद के छह भागों का कितमा क्षेत्रफल होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर छह भागों अर्थात् पूर्ण गेंद का घमफल xxx प्राप्त होता है। { वित्र ग्रंथ में देखने चाहिए। गाया २२ ! पृष्ठ ३. कुण्ड की शिखा के घनफल की वासना बनाकार क्षेत्र में ध्यास स तिगुणी परिधि होती है। परिधि को चौथाई व्याससे गुणा करने पर वृत्ताकार का क्षेत्रफल होता है । कुण्ड को शिखाउ भरनेसे शिक्षा की ऊंचाई परिधि की ग्यारहवां भाग होता है। शिखाउ चोटी से नीचे तक ढालु रूप होनी है अतः उसका क्षेत्रफल तिहाई होता है। अत: शिखा का घनफळ = पास x ३४ व्यास x परिधि x =व्यास x व्याम - परिधि व्यास - व्याय र परिधि-३ व्यास ४ ३ व्यास x परिधि =( परिधि } x परिधि अर्थात् परिधि के कारटचे भाग में परिधि के छठवें भाग के वर्ग को गुणा करने से शिखाउ का घनफल प्रा होता है । गाथा ९६ : पृष्ठ ९.-९१ वृताकार क्षेत्र की परिधि विष्कम्भ से V१०गुणी होती है, इसकी वासना इस प्रकार है गोल घेरे के व्यास के बाबर समाचतुरस्र क्षेत्र को भुजा व कोटो वि १ व वि १ है। इस चतुर्भुज के करण का वर्ग वि १४ft १+वि १x वि १ है। अर्थात २ वि वि है । इस कमणवर्ग को आधा करने पर दो अधं भाग हो जाते हैं। पुनः अधं करने पर चतुर्थाश हो जाता है । इसका भी आधा करने पर आठवां पंच हो जाता है। इस अष्टमांश को मुजा वि वि २ अर्थात् विवि और काटि विवि-विवि है। भुज और कोटि का समान छेद करने पर भुग - वि वि २४२४२ और कोटि विवि हो जाता है । इन दोनों को जोडने पर वि वि १० प्राप्त होता है । जब कि एक अष्टमांश का प्रमाण वि वि १० तब ६ पंशों का प्रमाण कितना होगा? वर्ग राशि का गुणाकार वर्ग रूप होता है। अत: आठ अंशों का प्रमाण वि वि १० x x ८ अर्थात् विवि १० अर्थात् परिधि का वर्ग विमम्म वर्गम दस गुणित है। वर्ग मूल करने पर १० के बगंमूल में गुणित-व्यास परिधि का प्रमाण होता है। (चित्र पृथ ९०-९१ पर हैं। गाथा १०३ : पृष्ठ ९८ ___ लवण समुद्र अर्थात् अन्तरंग भौर बहिरंग दो वृत्तों के बीच के क्षेत्र का क्षेत्रफल चतुरन रूप में प्राप्त करने को वासना-लवण समुद्र के वलय व्याम को ऊपर से छेद कर फैला देने पर एक विषप T ."
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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