SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 815
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट खंड ३ परिशिष्ट खंड ३ वासना गाथा १७ : पृष्ट १९-२० परिधि व्यास की तिगुणी होती है। इसकी वासना इस प्रकार है- एक लाख योजन व्यास वाले गोलाकार क्षेत्र को आधा कर पुनः दोनों अर्धभागों का आधा आधा करने से चार भाग हो जाते हैं। इन चारों खण्डों में से मध्य के दो खण्डों को मिला देने पर मध्य में अक्षेत्र हो जाता है। इस अर्धभाष में करण के हो जात है. इनमें से पुनः प्रत्येक का अर्थ भाग करके मध्य के दो खण्ड मिला देने से परिधि के अर्धव्यास बराबर छह खण्ड हो जाते हैं। छह खण्डों में से दो दो खण्डों को मिला देने से व्यास के बराबर परिधि के तीन खण्ड हो जाते हैं । एतत्सम्बन्धी चित्रों के लिए पृष्ठ ९० देखना चाहिए। त्रिज्या ( अर्ध व्यास) से वृत्त की परिधि पर किसी एक बिन्दु से परिधि पर चाप लगाकर, पुनः परिधि पर उस चाप के बिन्दु से पुनः परिधि पर चाप लगाने से और परिधि पर चाप बिन्दु को केन्द्र मानकर पुनः परिधि पर चाप लगाते लगाते त्रिज्या ( अर्थ व्यास ) बराबर परिधि के छह खण्ड हो जाते हैं । अर्धव्यास बराबर छह खण्ड व्यास- बराबर तीन खण्डों के समान है। इस प्रकार स्थूल रूप से परिधि व्यास को तिगुणी सिद्ध हो जाती है । गाथा १९ : पृष्ठ २६-२८ गेंद सह गोल वस्तु का घनफल ममचतुरस्र घनात्मक के घनफल का होता है। इसकी वासना इस प्रकार है एक व्यास और एक खात वाले गेंद जैसी पोल वस्तु को आषा करके, उसमें से एक अर्धभाग का उपरि भाग, जो कि पूर्ण वृत्तरूप है के तीन खण्ड करके, उनमें से एक तृतीय अंश के ऊपर से नीचे तक दो खण्ड करके, इस प्रकार रखा जावे कि एक चतुरस्र क्षेत्र बनजावे । गोलक रूप गेंद के अ खण्ड के मध्य भाग में वेध यद्यपि तथापि दोनों पाश्वं भागों में क्रमश: हीन होता गया है। इस हीन स्थान में चतुर्थांश अर्थात् आधे का चौथाई ( ३३ ) ऋण रूप से निःक्षिप्त करने पर समस्थल हो जाता है । इस समस्थल का तिरंगरूप से छेदकर ऊपर रख देनेसे और ऋण निकाल लेने पर वेष {{{{×} } }= रह जाता है । अभंगोलक के तीसरे खण्ड की भुजा और कोटि ३३ है । भुजा और फोटि ३ को परस्पर गुणा करने से (३ x) क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इस क्षेत्रफल
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy