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________________ गाया : १००२ त्यति हानिकारा मूलनपीठणिसण्णा चउद्दिमं चारि सिद्धनिणपडिमा | तप्रदो महके पीठे चिति विविहवण्णणा ।। १००२ ॥ लगपीठनिषण्णा चतुर्दिक्षु चतस्रः सिद्धजिन प्रतिमाः । उत्पुरतः महाकेतवः पोठेतिष्ठन्ति विविधयनकाः ॥ १००२ ।। LA मूलग । तचर लगतपीठमिघरामचतुविक्षु चतस्रः सिद्धसरसूले सिद्धप्रतिमा वरयतमूले चिनप्रतिमाः सन्ति । तपुरतः पोठे विविषवनका महाकेतवस्तिम्ति ।। १००२ ॥ गायार्थ :- चारों दिशाओं में उन वृक्षों के मूल में जो पोठ अवस्थित हैं उन पर चार सिद्ध प्रतिमाएँ और चार अरइन्त प्रतिमाएँ विराजमान है। उन प्रतिमाओं के आगे पीठ हैं जिनमें नाना प्रकार के वर्णन से युक्त महाध्वजाए स्थित हैं ।। १००२ ।। विशेषार्थ :- चारों दिशाओं में स्थित सिद्धार्थ वृक्ष की पीठ पर सिद्ध प्रतिमाएं और चैत्यवृक्ष की पीठ पर अरहन्त प्रतिमाएं विराजमान हैं उन प्रतिमाओं के आगे पीठ हैं जिनमें नाना प्रकार के वन से युक्त महाध्वजाए स्थित हैं। शंका :- सिद्ध प्रतिमा और अरहन्त प्रतिमा में क्या प्रस्तर है ? समाधान :- अरहुन्छ प्रतिमा बष्ट प्रातिहार्य संयुक्त ही होती है, किन्तु सिद्ध प्रतिमां बट प्राविहाय रहित होती है । यथा :-- १ वसुनन्दि प्रतिष्ठा पाठ तृतीय परिच्छेद : प्रातिहार्याष्टको पेतं सम्पूर्णावयत्रं शुभम् । भावरूपातुविद्धाङ्ग, कारयेद् विम्बमहंता ।। ६९ ।। प्रातिहार्येविना शुद्ध सिद्ध बिम्बमपीयाः । सूरीणां पाठकानां च साधूनाम् च यथागमम् ॥ ७० ॥ अर्थ :- अष्टप्राविहाय से युक्त, सम्पूर्ण अवयवों से सुन्दर तथा जिनका सन्निवेष ( प्राकृति ) भाव के अनुरूप है ऐमे अरहन्त बिम्ब का निर्माण करें ॥ ६३ ॥ सिद्ध प्रतिमा शुद्ध एवं प्रातिहार्य से रहित होती है। बागमानुसार माचार्य, उपाध्याय एवं arya की प्रतिमाओं का भी निर्माण करें ।। ७० । २ जयसेन प्रतिष्ठा पाठ के बिम्ब निर्माण प्रकरण में भी कहा है कि सल्लक्षणं भावविवृद्ध हेतुकं सम्पूर्ण शुद्धावयवं दिगम्बरं । सत्प्रातिहाय्यनिज विश्वभासुरं, संकारये विम्बमथाईतः शुभम् ॥ १८० ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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