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पाथा: १२
बरतियालोकाधिकार
पांच पाच तीन और चार कला अर्थात ३५५६६योजन क्षेत्र अवरुद्ध किया गया है। अब इन द्वीपों में स्थित भरतादि क्षेत्रों का प्यास ज्ञात करने के लिए हे शिष्य तू इन द्वीपों की शादि, मध्य बोय माझ परिधि को जान ॥६२८॥
विशेषार्थ:- धातकी खण्ड के पर्वतों से अवरुद्ध क्षेत्र का प्रमाण १८४२ योजन है और पुष्कराध के पर्वतों में अवरुद्ध क्षेत्र का प्रमाण ३५५६६४ योजन है। इन दोनों नीपों में स्थित भरतादि क्षेत्रों का व्यास ज्ञात करने के लिए हे शिष्य तुम इन द्वीपों को मादि मध्य और बाह्य परिधि जानो।
पर्वत अवरुद्ध क्षेत्र प्राप्त करने का विधान प्रगट करते हैं :
सर्व पर्वतों और सर्व क्षेत्रों को पालाकाओं के मिश्रण को पिशलाफा कहते है। यथा--जम्बू द्वीपस्थ भरतादि क्षेत्रों की शलाकाएं कम से एक, चार, सोलह, चौसठ, सोल है, चार और एक है, न सबका योग (१+४+१६+६४+१३+४+१)-१०६ प्राप्त हुआ तथा इसी द्वीप सम्बन्धी पर्वतों की शलाकाएं क्रम में दो, पाट, बत्तीस, बत्तीस, माठ और दो हैं. इनका योग (३++३+३++ २)=४ हुआ। इन सम्पूर्ण क्षेत्र और पर्वतों की शलाकाओं का मिश्रण (१०+८४)-१९० होता है और इन्हीं को मिश्र शलाकार कहते हैं । जबकि १९० सलाकाओं का मिथ ( पर्वतों एवं क्षेत्रों द्वारा अवरुद्ध ) क्षेत्र १००००० योजन प्रमाण है, तब क्षेत्र रहित पर्वतों की २४ शुद्ध शलाकाओं का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर ( २००९११४८४ ) ला४८४ योषन पर्वतों द्वारा अवरुद्ध क्षेत्र का प्रमारा प्राप्त हुआ।
जम्बूदीप की प्रत्येक शलाका से धातकी खण्ड की प्रत्येक शलाका दुने दूने प्रमाण वाली है. अत:-जबकि अम्बूदीपस्थ एक पालाका क्षेत्र का विस्तार पातकी खण्ड में दूना है, तब ला xcx शलाका क्षेत्र का कितना क्षेत्र प्राप्त होगा? इस प्रकार राधिक करने पर २ ला०४८४ योजन घातकी पण्ड के एक मेरु सम्बन्धी एक माग में पर्वतों द्वारा अवरुद्ध क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त हमा। जबकि एक भाग में श्ला० x ८४ योजन क्षेत्र है, तब दोनों मेक सम्बन्धी दोनों भागों में कितना क्षेत्र होषा ? इस प्रकार औराशिक करने पर पातकी खण्ड के सम्पूर्ण कुलाचलों से अबरुद्ध क्षेत्र का प्रमाण ला.४८४ पोजम प्राप्त होता है।
सब इसी का दूसरा विधान कहते हैं: जम्बूद्वीपस्प पर्वतों भीष क्षेत्रों के विस्तार में धातकी खण्डस्थ पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार दूना दूना है, इसलिए जम्बूद्वीपस्थ पर्वतों की शुद्धशालाका ८४ से धातकी खण्यस्थ पर्वतों की शुद्धशलाकाए दूनी अर्थात ( ५४४९ }=१६८ होंगी । इसीप्रकार मिश्र शलाकाएं भी थी दूनी अर्थात् ३० होगी।
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