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गाथा: ९१५
नरतिर्मग्लोकाधिकार
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अब समभूमि से ऊपर जल की ऊंचाई प्राप्त करने के लिए कहते हैं :-समभूमि पर मालव्याम दो लाख योजन है, यह भूमि है, तथा सोलह हजार की ऊंचाई पर जल का व्यास दश हजार योजन है यह मुख है । भूमि में से मुखपटा कर बाधा करने पर ( २०००००-१०००=१९०.००२) १५००० योजन की हानि प्राप्त हुई । समभूमि से जाल १६००० योजन ऊपर है । जब कि जल की १६.०. अचाई है तब । १००० जल व्यास की हानि होती है, तो जल को एक योजन को ऊंचाई पर कितती हानि होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर (12)- योजन जल व्यास की हानि प्राप्त हुई।
___ जबकि तट से+योजन जाने पर जल की ऊंचाई १ योजन प्राप्त होती है, तब एक योजन दूर बाने पर जल की कितनी चाई प्राप्त होगी। इस प्रकार के श्रराशिक से २५ योजन जल की ऊंचाई एक योजन पर प्राप्त होती है।
जबकि तट से एक योजन की दूरी पर जल की ऊचाईयोजन है, सब कम से ५०० योजन, ५०० योजन, ५५. योनन ओर ६०० योजनों की दूरी पर जल की ऊंचाई क्या प्राप्त होगी। इस प्रकार चार राशिक करने पर कम में ४५००, ५००, ११४५५० और १४६०० योजन प्राप्त हुए। इन्हें ५ से अपवर्तन करने पर 12°, १०, ११० और १२० हुए । इन्हें अपने भागहार से भाजित करने से प्रत्येक स्थान पर जल को चाई का प्रमाण प्राप्त होता है। यथा-जही दिशा और विदिशा सम्बन्धी द्वीप हैं वहाँ अल की ऊंचाई समभूमि से 12, ४ योजन है मग्तर दिशा सम्बन्धी द्वीप जहाँ है वहाँ के जल की ऊँचाई १२२ योजन है और पर्वतों के निकटवर्ती द्वीप जहा है वहाँ के जल की ऊंचाई १.१ योजन प्रमाण है।
___ इस प्रकार समभूमि से नीचे जल की गहराई और समभूमि से जल की ऊंचाई इन दोनों का योग कर देने पर जो जल के अवगाह का प्रमाण प्रात होता है वही उन इन द्वीपों की ऊंचाई का प्रमाण जानना । प्रत्येक द्वीपों की वेदी एक योजन की है अतः वेदी महित द्वीप जल से एक योजन ऊंचे हैं। यथा:-जहाँ जहाँ द्वीप स्थित हैं, वहाँ वहाँ के जल की
गहराई + अचाई = अवगाह + वेदिका - वेदी सहित बोपों की ऊंचाई। १. ५० + ८४ - ८ + - १० योजन दिशा सम्बन्धो । २. + ८४ - ८ + १ = ६०५ यो• विदिशा सम्बन्धी। ३. ५५५ + ६२३३ = ८१६ + १ - Ravi * अन्तरदिशा » । ४. ६१ + १०१९- १०४५१ + १ = १०८२-पर्वतों के निकटवर्ती द्वीपों को ऊँचाई।
इसी उपयुक्त विधान द्वारा कौस्तुभ आदि पर्वतों ( द्वीपों ) की ऊँचाई भी ज्ञातव्य है।