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________________ ફર त्रिलोकसाब गाथा : ५१२-६१३ जितने काल बाद दूसरे तीर्थंकर मोक्ष गए वही उनका अन्तराल काल है। इसी अन्तराल काल में से अपनी अपनी आयु का प्रमाण होत कर देने से एक जिन से दूसरे जिन के अन्तराल के काल का प्रमारण प्राप्त हो जाता है । जैसे :- प्रथम अन्तराल के प्रमाण ५० करोड़ सागर, ३ वर्ष, १३ माह में से अजितनाथ भगवान् की आयु का प्रमाण ७२ लाख पूर्व घटा देने पर जो अवशेष बचे वह प्रथम तीर्थंकर को मुक्ति के समय से द्वितीय तीर्थंकर के जन्म काल के अन्तर का प्रमाण है। दूसरे अन्दराल के प्रमाण ३० लाख करोड़ सागर में से सम्भवनाथ भगवान् को आयु का प्रमाण ६० लाख पूर्व घटा देने पर जो अवशेष बचे वही अजितनाथ भगवान के मुक्तिकाल से सम्भवनाथ भगवान के जन्मकाल के अन्तर का प्रमाण है। इसी प्रकार सर्वत्र लगा लेना चाहिए। वीरजिण तित्थकालो इगिदी ससदस्सवास दुस्समगो । इह सो वेचियमेचो अदुस्समगोविं मिलिदच्व ।। ८१२ ।। तदिए तुरिए काले तिवासमासपखपरिसे से । वसो वीरो सिद्धो पुव्वे तित्थेय उस्सं || ८१३ ॥ बोर जिन तीर्थं कालः एकविंशतिसहस्रवर्षाणि दुःषमः । इह सः तावन्मात्रः अतिदुःषम कोऽपि मेलयितव्यः ॥। ८१२ ।। तृतीये तुर्ये काले त्रिवर्ष प्रष्टम सपक्षपरिशेषे । वृपभो वीरः सिद्धः पूर्वे तीर्थंकारायुष्यं ॥ ८१३ ॥ बोर । दुःषयाख्यः वीरजिनतीर्थकाल: एकविशतिसहस्रवर्षाणि २१००० इहातिदुःषपादपः । स प्रसिद्धोऽपि सावन्मात्र २१००० एष मेलयितव्यः ॥ १२ ॥ तदिए। सूखीये तु काले त्रिवर्षाष्टमाकपक्षावशेषे सति यथासंख्यं वृषभो वीरजिनश्य सिद्धिमगमत्। पूर्वपूर्वतीर्यान्तरे उत्तरती करायुष्यं विद्युतीति ज्ञातव्यं । वीरजिनमुक्तं स्वशेषकालं व० ३ मा० ८ ५० १ पार्श्वभट्टारकान्तरे २४६ मास ३प० १ मेलयित्वा २५० प्रस्माद्यथायोग्यं सर्वेष्वन्तरेषु मिलिष्ककोटोफोटिसागरोपमं भवति ॥ ८१३ ॥ गाथार्थ :- इक्कीस हजार वर्ष हे प्रमाण जिसका ऐसे दुःषम नाम पचमकाल में वीर जिनेन्द्र का सीर्घकाल है । अतिदुःषम नामक षष्ठ काल भी इक्कीस हजार वर्ष का है, उसे भी इसी में मिला देना चाहिए। तृतीय काल के तीन वर्ष साढ़े आठ मास अवशेष तव वृषभनाथ सिद्ध हुए धौर चतुर्थ काल का भी इतना ही समय अवशेष था तत्र वीर प्रभु मुक्त गए, पूर्व पूर्व वीकर के अन्तरकाल में उत्तर उत्तर तीर्थंकर की आयु का प्रमाण सम्मिलित है ।। ८१२-६१३ ।। विशेषार्थ : - दुःषम नामक पचम काल २१००० वर्ष का है, इसमें वीर नाथ भगवान् का तीर्थंकाल वतं रहा है। अतिदुःषम नामक छठव काल भी २१००० वर्ष का है उसे भी इसमें मिला देते
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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