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मिलोकसार
गाथा:१६-१७
द्विप्रभृतिभिरिति किमिस्याशङ्कामपनुदलाह
एयादीया गणणा बीयादीया हति संखेज्जा । तीयादीणं' णियमा कदिचि सण्णा मुणेदब्बा ||१६||
एकादिका गणना व्यादिकाः भवन्ति संख्याताः ।
त्र्यादीनां नियमात् कृतिरिति मंज्ञा मन्तव्या ॥१६|| एया । एकालिका गणना गमाविका संख्याता भवन्ति यावीमा नियमाव कृतिरिति संज्ञा भातम्या । यस्य कृती मूलमपमीर शेषे नित वषिते' हा कृतिरिति । एकस्य दोश्च कृतिलारणाभावात एकस्य नोकृतिस्वं तयोरवक्तव्यमिति' कृतित्वं । व्यावीनामेव तलक्षणयुक्तस्वार कृतित्वं युक्तम् ॥१६॥
दो आदि सरसों क्यों कहे । इसका समाधान
गावाचं :-एक को मादि लेकर गणना और दो को आदि लेकर संख्यात होता है, तथा नियम से तीन को आदि लेकर कृति संज्ञा होती है ।। १६ ।।
विशेषार्थ :-गणना एक के अद्ध से प्रारम्भ होती है, यह एक की संख्या गणना होते हुये भी नोकृति है, क्योंकि एक संध्या का वर्ग करने पर वृद्धि नहीं होती, नथा जममें से वर्गमूल के कम कर देने पर वह निमूल नष्ट हो जाती है । जैसे :-१४१-१-१-० अतः एक का अङ्घ गणना होते हुये भी नोकृति है।
संख्यात:-संख्यात दो के अङ्ग से प्रारम्भ होता है । अर्थात् २ का अजघन्य संख्यात है। यह दो का अङ्क अवक्तव्य कृति है, क्योंकि दो का वर्ग करने पर इसमें वृद्धि तो देखी जाती है, किन्तु इसके वर्ग में से मूल घटा कर वर्ग करने पर वृद्धि नहीं होती । जैसे :-२४२-४ वृद्धि तो हुई किन्तु ४-२२४२-४ यहां वृद्धि नहीं हुई, अत: दो का अक अवक्तव्य कृति है।
कृति:-कृति तीन को संख्या को आदि लेकर होती है, बयोंकि जो राशि वर्गित होकर वृद्धि को प्राप्त होती है, और अपने वर्ग में से अपने वर्ग के मूल को घटा कर शेष का वर्ग करने पर दृद्धि को प्राप्त होती है, उसे कृत्ति कहते हैं। जैसे :--३ ४ ३ = १-३ मूल राशि-६४६ ३६ यहाँ वृद्धि हुई, अतः तीन का अङ्क कृति है। अथोक्तयोजनलक्षभ्यासकुण्डस्य समस्तक्षेत्रफल "ज्ञापनार्थमाह--
पासो तिगुणो परिही वास चउत्थाहदों दुखेसफलं । खेतफलं वेहगुणं खादफलं होइ मुम्वत्थ ॥१७||
१ तेमादीणं ( ५०)। २ मुगेयब्बा (ब)। ३ रद्धं ते ( ब० ५०)। ४ वयोग्वक्तव्यकृतित्व
(ब.प.)। ५ क्षेत्र स्थूनफल ( 10 ) ।