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________________ चिलोकसार पाषा: ५५६-७१. विशोषा: - जम्बूदीप में वक्षार (गजवन्तों का व्यास ५०० योजन और पूर्व-पश्चिम भशार: BAIRI (५०५ योपन है। भद्रशाल के व्यास में से गजवन्त का ध्यास घटा कर दूना करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसे मेरु व्यास में जोड़ देने से कुरुक्षेत्र की जीवा का प्रमाण प्राप्त होता है। यया:-२२०.. - ५००-२१५७.४२-४३०००+ १००००-५३... योजन कुछ क्षेत्र की जीवा है । अर्थात् दोनों गज दन्त पूर्व-पश्चिम भद्रशाल की वेदी के समीप कुलाचलों को स्पर्श करते है, अत: दोनों गज दन्तों के बीच मुलाचलों की लम्बाई ५३.०० योजन है । प्रायेक गजदम्त का आयाम (लम्बाई ) ३०२०९५० योजन है। दोनों मजदन्तों की लम्बाई मिला देने पर ( ३.२०६17+ ३०२० -६०४१८२० योजन कुरु क्षेत्र के चाप का प्रमाण होता है । मेरुगिरिभूमिवासं अरणीय विदेहवस्सवासादो । दलिदे कुरुविक्खंमो सो चेव कुरुस्स बाणं च || ७५ || मेमगिरिभूमिव्यासं अपनीय विदेहवर्षभ्यासतः । दलिते कुरुविष्कम्भः स चैव कुरोः बाणः च ।। ७५६ || मेह । एतावच्छलाकाना १९. एतावति क्षेत्रे १.... एतावच्छलाकाना ६४ किमिति सम्पात्यापतिते १४१२०० मिदेहवर्षभ्यास: स्यात् । पत्र मेगिरिमूमिव्यास १०००० समच्छेदेना १९१११° पनीय ५११५० दलिते २३५१- कुरुविष्कम्भः स्व स घर कुरुक्षेत्रस्य बाणः स्याद । तवा जीवाकृति पनुःकृति वामयति । ७५६ ॥ गाथा:-विदेह क्षेत्र के व्यास में से मेरुगिरि का भू व्यास पटा कर आधा करने पर कुरुक्षेत्र के विष्कम्म का प्रमाण होता है, और यही कुरुक्षेत्र के वाण का प्रमाण है ॥ ७५६ ।। विशेवार्थ:-जब कि जम्बूद्वीप को १६. शलाकाओं का १०...योजन क्षेत्र होता है, तब विदेह क्षेत्र की ६४ शालाकाओं का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर 1१०१९४०४11 )=१० योजन विदेह क्षेत्र का व्यास प्राप्त हुमा। इसमें से मेकगिरि का भूम्यास१.... योजन घटा कर आधा कर देने पर ( 22° - 1290° = ४००००००००० १५०५०x२= २३५१०० अर्थात् ११६४२३६ योजन कुरुक्षेत्र का व्यास प्राप्त होता है, और वही अर्थात् १२५६१० योजन हो कुरु क्षेत्र के वाण का प्रमाण है इसीको रखकर जीवाकृति और धनुषकृति का प्रमाण प्राम करते हैं। इसुद्दीणं विखंभं चउगुणिदिसुणा हदे दु जीवकदी । पाणकदि यहिं गुणिदे तत्थ जुदे घणुकदी होदि ।। ७६० ।। इषुहीन विष्कम्भं चतुणितेषुणा कृते तु जीवाकृतिः । बाणकृति षभिः गुणिते तत्र युते धनुःकृतिः भवति ॥७६०॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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