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________________ त्रिलोकसार गाथा: १३ णायं । जिनेषु च शानं क्रमाउनघन्यमुत्कृष्ट मध्यम भनेकविध । तत्रापि द्रव्यं निषिधं संख्याप्रमारणमुपमाप्रमाणमिति । तत्रोपमाप्रमाणमविषं । पल्पमतपयमावो वक्तव्यमिति न्यायेन यथोक्तोद्दशेन' निर्देशं मुपाया उपमामेव उच्यते । उपमा प्रष्टविधेति ॥१२॥ लोकोत्तर चारों मानों की क्रमसे जघन्योत्कृष्ट की प्रतीति के लिए चार गाथाएं कहते हैं गाथार्थ :-द्रव्यमानमें जघन्य एक परमाणु और उत्कृष्ट मम्पूर्ण द्रव्य समूह क्षेत्रमान में जघन्य एक प्रदेश और उत्कृष्ट सब काश; कालमान में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट सर्वकाल; भावमान में जघन्य सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपप्तिक का पर्याय नाम का ज्ञान और उत्कृष्ट जिनेन्द्र भगवान में केबलज्ञान-इस प्रकार क्रम से जघन्य और उत्कृष्ट मान हैं। मध्यम मान अनेक प्रकार का है। द्रव्यमान दो प्रकार का है। संख्या प्रमाण और उपमा प्रमाण । उपमा प्रमाण आठ प्रकार का है ।।११-१२।। ___विशेषार्थ :- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार में से द्रव्य मान के दो भेद हैं-संख्या प्रमाण और उपमा प्रमाण । जिसका कथन अल्प है उसे पहले कहना चाहिये । इस नियम के अनुसार उपमा प्रमाण के भेद पहले कहत है । वह आः प्रकार का है। कारण प्रतिपतिपूर्वकत्वात् कार्यप्रतिपत्त रिति तामपि त्यजति तं उबरि भणिस्सामो संखेजमसंखमणतमिदि ति विह। संखंतिल्लदु तिविहं परिचजुति दुगवारं ।। १३ ।। तामुपरि भणिष्यामः संख्येयं असंख्य मनन्तमितिविविधम्। संख्यं अन्तिमद्धिक त्रिविध परील युक्त इति त्रिकतारम् ।।१३।। तं उपरि । तामुपरि भरिगण्याम इति । प्रवशिष्ठभेव उच्यते--संख्येयं, असंख्यं, प्रमन्तमिति त्रिविषम् । संख्यं प्रन्तिमविक विविध परीतं युक्त हिरवामिति ॥१३॥ कारण का ज्ञान होने पर ही कार्य का ज्ञान होता है, इस न्यायानुसार उपमाको भी छोड़ते हैं पायार्प :--उस उपमा प्रमाण को आगे कहेंगे 1 संख्यात, असंख्यात और अनन्त के भेद से संख्या प्रमाण तीन प्रकार का है । इसमें संख्यात एक ही प्रकार का है। किन्तु असंख्यात और अनन्त परीत, युक्त और द्विकवार के भेद से तीन तीन प्रकार के हैं ||१३|| विशेषार्थ :-संख्यात एक ही प्रकार का है। किन्तु परीतासंख्यात, युक्तागंख्यान और असंख्यातासंख्यात के भेद से असंख्यात तीन प्रकार का है । तथा परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तानन्त के भेद से अनन्त भी तीन प्रकार का है। इस प्रकार तीनों के कुल सात भेद हार। १ यथोद्देशन ( व०, प.)। २ तिविहा ( ब०, प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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