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त्रिलोकसा
पापा : ६६६ से ६७०
गायार्थ :-सीता नदी के उत्तर तट से प्रारम्भ कर प्रदक्षिणा रूप से चार वक्षार पर्वतों के नाम पित्रकुट, पद्य कट, नलिन और एकशैल हैं। तथा गायक्ती, द्रवती और पद्बती नाम की तीन विभंगा नदियां हैं। सीता नदी के दक्षिण तट को आदि करके क्रम से विकूट, वैश्रवण, अनात्मा और अग्लन नामक चार वक्षार पर्वत और तप्तजला, मत्तजला एवं उन्मत्तजला नामकी तीन विभंगा नदियाँ हैं।
। पश्चिम विदेह में सीतोदा के दक्षिण तट पर भद्रशाल पेदी से प्रारम्भ कर क्रम से श्रद्धावान, विजटावात्, आशीविष और सुखावह नाम के चार वक्षार पर्वत हैं, तथा इनके बीचों बोच क्षारोदा, सोतोदा और सोतवाहिनी नाम की तीन विभंगा नदियाँ हैं । इसके बाद चन्द्रमाल, सूर्यमाल, नागमाल और देवमाल नाम के चार वक्षार पर्वत तथा गम्भीरमालिनी, फेममालिनी और अमिमालिनी नाम को तीन विभंगा नदिया है । [ उपर्युक्त सोलह । वक्षार पर्वत हेममय है, तथा विभंगा नदियों का सम्पूर्ण वर्णन रोहित नदी के सदृश है । इन नदियों के प्रवेश और निगम स्थानों के तोरणों पर स्थित गृहों में दिक्कन्याएँ रहतीं हैं ।। ६६६ से १७० ॥
विशेषावं :- सौता नदी के उत्तर तट को आदि करके भद्रयाल की वेदी के मागे से प्रदक्षिणा रूप वक्षार पर्वतों के चित्रकूट, पचफूट, नलिन और एक शेल नाम है, तबा गाघवती, द्रहवती और पखवती नाम की तीन विभंगा नदिया है । सीता नदी के दक्षिण तट को आदि करके देवारभ्य की वेदी के मागे क्रम से श्रिकट, वैश्रवण, अखनारमा और अखन नामकेचार वक्षार पर्वत और ताजला. मतजला एवं उन्मत्तजला नाम की तीन विभंगा नदियाँ हैं। पश्चिम विदेह क्षेत्र में सोतोदा नदी के दक्षिण तट पर भद्रशाल की वेदी से प्रारम्भ कर कम से श्रद्धावान्, विजदावान, आशीविष और सुखावह नाम के चार वकार पर्वत है, तथा इन्हीं के बीचों बीच क्षारोदा, सोतोदा और स्रोतवाहिनी नाम की तीन विभंगा नदिया है।
सीतोदा नदी के दक्षिण तट के बाद पश्चिम विदेह क्षेत्र में उसी सीतोदा के उत्तर पद पर देवारण्य को वेदी से आगे क्रम से चन्द्रमान, सूर्यमाल, नायमाल और देवमाल नाम के चार वक्षार पर्वत है, तथा इन्हीं के बीचों बीच गम्भीरमालिनी, फेनमालिनी और धमिमालिनी नाम की चीन विभंगा नदियां बहती हैं।
पूर्व अपर विदेह सम्बन्धी चारों विभागों के सोलह ही वक्षार पर्वत स्वर्णमय हैं, तथा इन चारों क्षेत्र सम्बन्धी बारह ही विभङ्गा नदियों का वर्णन रोहित नदी के सहश है। जिस प्रकार रोहित नदी के निर्गमादि स्थानों के व्यास आदि का प्रमाण है उसी प्रकार विभङ्गा नदियों का है। ये विभंपा नदिया नील और निषष कुलाचलों के निकटवर्ती कुण्डों से निकलकर सीता-सीतोदा नदियों में मिलीं हैं। ये निर्गम स्थान पर १२६ (३५) योजन और प्रवेश स्थान पर १२५ योजन चौड़ी हैं। प्रत्येक को परिवार नदियों का प्रमाण २८०.. है । कुण्ड की वेदी के तोरण तार अर्थात् कुण के जिस द्वार से