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________________ पाया। ६. मपतियालोकाधिकार विशेषार्थ:-प्रत्येक शिला स्थित तीनों आसनों की ऊंचाई १०. धनुष नीचे की चौड़ाई ५०० धनुष और ऊपर की चौड़ाई २५. धनुष प्रमाण है। इन आसनों का मुख पूर्व दिशा की ओर है। पाण्डक वन के मध्य में मेरु की वैडूर्य रत्नों से रचित धूलिका है जिसकी ऊंचाई ४० योजन, धूलिका की नीचे की चौड़ाई १२ योजन और ऊपर की चौड़ाई ४ योजन प्रमाण है। पाण्डक आरि चारों शिलाओं एवं सिंहासन आदि का चित्रण निम्न प्रकार : 1.014 trena दरकार (EFIN 6 . 31. si Mk. NA 0 IPurrt अथ उक्तानां सर्वेषां किश्चिद्विशेषमाह पव्वदचावीकूडा सवामो पंडुगादिय सिलाओ। वणवेदितोरणे िणाणामणिणिम्मिएहिं जुदा ।। ६३८ ॥ पवंतवापीकुटा: सर्वे पाण्डकादिकाः शिलाः । वनवेदोतोरणः नानामरिणनिर्मितः युताः ॥ ६३८ ।। पम्वद । पर्वताः वाप्यः कूटाः पाशाकाविका शिलाश्च सर्वे नानामरिणनिमितपनदी भिस्तोरणच युता। स्पुः ॥ १३॥ ऊपर कहे हुए पर्वत कूट आदि सभी को कुछ विशेषता कहते हैं पाया :-पर्वत, वापी, कूट और पाण्डकादि शिलाए ये सभी नाना प्रकार की मणियों में निमित वनवेदियों एवं तोरणों से युक्त है ।। ६३८ ॥ अथ जम्बूवृक्षस्थानादिक सपरिकर गाथै कादशकेनाह--
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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