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त्रिलोकसार
पापा : ६१९-६२०
पापा : - मेरु प्रथमतः नीचे से प्रारम्भ कर ६१००० योजन पर्यन्त नाना प्रकार के रत्नों से खचित होने के कारण अनेक वर का है; इससे ऊपर पूरा मेरु स्वर्ण सहश व का है । ६१८ ॥ अथ नन्दन। दिषु स्थितभवननामादिकं गाथाद्वयेनाह—
माणीचारणगंधच्च चिचणामाणि वट्टभवणाणि । गंदणच उदिसमुदओ पण्णासं तीस वित्थारो ।। ६१९ ।। मानीचा रणगन्धवं चित्रनामानि वृत्तभवनानि ।
नन्दनचतुर्दिक्षु उदयः पचाशत् त्रिशत् विस्तारः ॥ ६१९ ॥
माणी | मानीचारपन्धर्व चित्रनामानि वृत्तभवमानि नन्दने चतुविक्षु सन्ति । सेवामुदयः पाशयोजनानि विहारस्तु त्रिशयोजनानि ॥ ६१६ ॥
नन्दनादि वनों में स्थित भवनों के नामादिक दो गाथाओं में कहते हैं
गावार्थ :- मानी, चारण, गन्धवं और चित्र नाम वाले गोलभवन नन्दनवन की पूर्वादि चारों दिशाओं में हैं। उनकी ऊंचाई पचास योजन मोर विस्वार (व्यास ) तीस योजन प्रमाण है || ६१६ ||
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विशेवार्थ : - नन्दन वन की पूर्व दिशा में मानी, दक्षिण में चारण, पश्चिम में गन्ध और उत्तर में चित्र नामके भवन हैं। उनका आकार गोल है तथा ऊँचाई ५० योजन और विस्तार ३० योजन प्रमाण है ।
सोमणमदुगे वज्जं पञ्जादिपह सुवण्ण तप्पहयं । लोहिद भंजणहारिपहरा दलिददलमाणा ।। ६२० ॥ सौमनसद्विके व वज्रादिप्रभं सुवर्ण तत्प्रभं । लोहिताखनाद्विपाण्डुरा दलितदळमानाः || ६२० ।।
सोमरण | सोमनसपाण्डुकयोययासंख्यं चत्वारि चत्वारि वृत्तभवनामि । तानि कानि ? वत्रवज्रप्रभसुवर्ण सुथ प्रभनामानि लोहिताच्जन हारिद्रपाण्डुरनामानि । नखनोक्तोदयव्यासावर्धत वर्षप्रमाणानि ॥ ६२० ॥
गाथार्थ :- सौमनस और पाण्डुक वनों में भी यथाक्रम वस्त्र, वज्रप्रभ, सुवर्ण और सुवर्णप्रभ तथा लोहित, अञ्जन हारिद्र और पाण्डुर ये गोल भवन हैं। नन्दन वन के भवनों के उदय और व्यास से सौमनस के भवनों का उदय और व्यास बाधा है तथा पाण्डुक वन के भवनों का उदय और व्यास इनसे भी आधा है ॥ ६२० ॥
विशेषार्थ :- सौमनस वन की पूर्व दिशा में वज्र नामक भवन, दक्षिण में वज्रप्रभ, पश्चिम में सुवर्ण और उत्तर में सुवर्णप्रम नामवाले गोल भवन है। नन्दन वन के भवनों से इन भवनों की