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माथा: ५५६ वैमानिकोकाधिकार
४७९ सम्मझे। तन्मध्ये रुप्यमयं छत्राकार मनुष्यक्षेत्रण्यासं सिख क्षेत्रमस्ति । तपाहत्य मध्ये पष्टयोजनवे पन्यत्र सर्वत्र महीनं ज्ञातम्यम् ॥ ५५७ ॥
उत्ताण । अन्ते तनुरूपमुत्तानस्थितपात्रभिव चषकमिवेत्यर्थः तस्य सिविक्षेत्रस्योपरिमतनुकाते पष्टगुणाच्या प्रमन्तसुखतृप्ताः सिखा लिन्ति ॥ ५५८ ॥
अष्टम पृथ्वी के मध्य में स्थित सिद्ध के का स्वरूप दो गाथाओं पाहते हैं
पायार्थ :-इस आठवीं पृथ्वी के ठीक मध्य में रजतमय छत्राकार और मनुष्य क्षेत्र के व्यास प्रमाण सिद्ध क्षेत्र है। जिसकी मध्य की मोटाई आठ योजन है। और अन्यत्र क्रम क्रम से हीन होती हुई अन्त में ऊँचे ( सीधे ) रखे हुए कटोरे के सदृश थोड़ी ( मोटाई ) रह गई है। इस सिद्ध क्षेत्र के ऊपरवर्ती तनुवातवलय में सम्यक्त्वादि आठ गुणों से युक्त और अनन्त सुख से तृप्त सिद्ध परमेष्ठो स्थित हैं ॥ ५५७, ५५८ ।।
विशेषर्ष:-जिस प्रकार पृथ्वी पर शिला होती है, उसी प्रकार आठवीं पृथ्वी के ठीक मध्य भाग में चांदी सदृश ( श्वेत । वर्ण वाली छत्राकार शिला है। इसो को सिद्ध क्षेत्र कहते हैं। इस सिद्ध क्षेत्र का व्यास मनुष्य क्षेत्र सदृश अर्थात् ४५००.०० योजन । १८००००००.०० मील) प्रमाण है। उसका बाहुल्य मध्य में अष्ट योजन ( ३२००० मोल ) है, अन्यत्र सर्वत्र क्रम कम हीन होता हुआ अन्त में बिल्कुल कम ( एक प्रदेश प्रमाण । रह गया है। यह सीधे रखे हुए कटोरे या धवल छत्र के आकार बाला है। इस सिद्ध क्षेत्र के उपरिम तनुवातबलय में सम्यक्त्वादि आठ गुणों से युक्त एवं अनन्त सुख से तृप्त सिद्ध भगवान स्थित है । वह सिद्ध लोक है ।। अथ अनन्तमुखतृप्तत्वे कष्टान्तान्तरं गाथाद्वयेनाह---
एयं सत्यं सव्वं सत्थं वा सम्ममेत्थ जाणंता । तिब्ध तुस्संति गरा किण्ण समत्थत्यतच्चाहा ॥५५९|| एक शास्त्रं सर्व शास्त्रं वा सम्यगत्र जानतः ।
तीन तुष्यन्ति नरा:कि न समस्तार्थतत्त्वज्ञाः ॥ ५५ ॥ एवं एक शास' सन शास्त्रं वा सम्यगत्र मानन्तो नरास्तीत तुध्यन्ति समस्तातरवनातु सिखा कि न सुष्यन्ति ? अपि तु तुष्यन्येव ॥ ५५६ ॥
प्रब दो गाथाओं द्वारा अनन्त सुख की तृप्तता के दृष्टीत कहते हैं
गाशा :-जब एक शास्त्र या सर्व शास्त्रों को भली प्रकार जान लेने वाले मनुष्य तीव्र संतोष को प्राप्त होते हैं, तब समस्त अयं एवं तत्त्वों को जानने वाले सिद्ध प्रभु क्या तृति को प्राप्त नहीं होंगे? अपितु होंगे हो होंगे ॥ ५५६ ॥
विशेषार्थ:-जबकि एक या सर्व शास्त्रों को ( सम्यक ) भली प्रकार से जान लेने वाले