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गाया : ५३३
मानिकलोकाधिकार
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क्रमोक स्वगं युगल अन्तिम आयु-आदि आयु = प्रवशेष आय: एक कम हानिचय
प्रमाण प्रमाण प्रमाण गच्छ सौधर्मशान ५ - (ऋतु पटल)- ३ ६ ३. = सागय सा• माहे. १ -- ३ = १ . =११ या " ब्रह्मन्द्रमो. ' - -
४ - सागर ला-का० १. - =
२ = या २. शुक्र-महा० दातार-सह. बानत-मा
___-- ३ ३ = या . भारण-अच्युत
प्रथम ऋतु पटल को उत्कृष्टायु का प्रमाण सागर है, इसमें हानिचय का प्रमाण सागर मिला देने पर (21-पर-१५+२) सागर दूसरे विमल पटल की आयु प्राप्त हुई। इसमें पुनः हानि चय मिला देने पर { +91)- सागर उत्कृष्टाय तृतीय चन्द्र पटल की हुई । इसी प्रकार मागे भी जागना चाहिए।
अघातायुष्कों की सस्कृष्टायु भी इसी प्रकार प्राप्त करना चाहिए । यथाकमाक स्वर्ग युगल मन्तिम उ• आयु-आदि उ. पाय = अवशेषायु: एक कम पच्छ-हानिचय
सौधर्मेशन २ सागर - सा. ( ऋतु प.)- ३. -" या सास-मा.
७ - सागर ब्रह्म-ब्रह्मो लां०-का. शुक-महा० श०-सह.
+ १ = २ बा०-प्राक आ.- .
=२ - ३ - . प्रथम ऋतु पटल की सागर उत्कृष्टायु में सागर हानिचय का प्रमाण मिला देने पर (३+2) सागर द्वितीय विमल पटल को उत्कृष्टायु प्राप्त हुई। इसमें पुनः हानि चय मिलाने पर (23+)-* सागर तृतीय चन्द्र पटल की उत्कृष्टाय हुई । इसी प्रकार आगे भी जानना।
प्रत्येक स्वर्गों के प्रत्येक पटलों को श्रादि आय प्रमाण में हानिक्य मिलाकर घातायुक और पघावायष्क दोनों की उत्कृष्टाय का
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