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पाचा । ५६१-५२२
वैमानिक लोकाधिकार
तुरिजुद विजुदओषणाणि उचरिं मधोवि ण करण्डा । सोहम्मदुगे भरहेगवदतित्थपर पडिवद्धा ।। ५२१ ॥ माणककुमारजुगले पुन्त्रवर विदेइतित्थयर भूम्रा । विदविदा सुरेहिं कोडीपरिणाह बारंसो ।। ५२२ ।। सुरीयुत वियुतप योजनानां उपरि अधोऽपि न करण्याः । सौधर्मद्विके मरतैरावततीर्थंकर प्रतिबद्धो ।। ५२१ ।। सानत्कुमारयुगले पुत्र पर विदेहतीर्थंकर सूपाः ।
स्थापयित्वा चिताः सुरैः कोटिरिगाहः द्वादशांशः ॥ ५२२ ।।
तुर । सम्मानस्तम्भस्योपरि योजनचतुपायुक्त द्वे षड्योजनेषु १५ तस्याश्च योजनतुर्थांश विपुरुष योजनेषु करण्डा न सन्ति । सौधर्मद्विके तो मानस्तम्भी भरतेरावतीकुर
प्रतिबद्ध स्वाताम् ॥ ५२१ ॥
सामकुमार सामकुमारयुगले मामस्तम्भयोः पूर्वापर विदेहती करभूषाः स्थापयित्था सुरचिता तम्मानस्वम्मभारान्तरं परिव
गाथार्थ :- मानस्तम्भों के चतुर्थ भाग से युक्त और वियुक्त छह योजन अर्थात् पौने छह योजन नीचे और सवा वह योजन ऊपर करण्ड नहीं हैं। सौधर्मेशान कल्पों में स्थित मानस्तम्भ के ऊपर स्थापित करण्ड भरतंरावत के तीर्थंकरों के निमित्त है। तथा सानत्कुमारमाहेन्द्र कल्पों में स्थित मानस्तम्भों पर देवों द्वारा स्थापित एवं पूजित करम्हों में पूर्व और अपर विदेह क्षेत्रों के तीर्थंकरों के आभूषण हैं। उन मानस्तम्भों की धाराओं का अन्तर परिधि के वारहवें भाग (एक कोश) प्रमाण है ।। ५२१, ५२२ ॥
विशेषार्थ :- मानस्म्भों की ऊंचाई ३६ मोजन है। भाग से सहित १ योजन अर्थात् (योजन ६१ योजन के उपरिम भाग में और भाग रहित ६ योजन (६) अर्थात् पौने छह योजन नीचे के भाग में करण्ड नहीं है । सोधर्म कल्प में स्थित मानस्तम्भ पर स्थापित करण्डों के आभरणा भरतक्षेत्र सम्बन्धी तीर्थंकरों के लिये है। ऐशान करुप में स्थित मानस्तम्भ पर स्थापित करण्डों के आभरण ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों के लिए हैं। इसी प्रकार सानत्कुमार कल्प में स्थित मानस्तम्भ के करों के आभरण पूर्व विदेह क्षेत्र सम्बन्धी तीर्थकरों के लिये और माहेन्द्र कल्प में स्थित मानस्तम्भ पर स्थापित करण्डों के आभरण पश्चिम त्रिदेह क्षेत्र सम्बन्धी तीर्थकरों के लिए है। ये मभी करण्ड देवों द्वारा स्थापित और पूजित हैं। इन मानस्तम्भों की धारात्रों का अस्तर मानस्तम्भ की परिधि । ३x४ = १२ कोश ) का बारहवां भाग अर्थात् एक कोश का है ।
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