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________________ पाषा:४९ वैमानिकलोकाधिकार ४३१ द्वादश चतुर्दशपोडशसहस्राणि अभ्यन्तरादिपारिषदाः । तत्र सहयद्य ना द्विसहवात् हि अधिम् ।। ४६८ ।। पारस । प्रागुक्तमयसु स्थानेषु मावो प्रसन्तराषिपारिवाना संल्पा यथासंख्य द्वारासहस्रारिए चतुर्दशसहस्राणि षोडशसहस्राणि तत उपरि तत्र पृथक पृथक सहमतिकोनसंख्या स्यात् । विसहलानुपरि अरिंकमो ज्ञातव्यः ॥ ४६८ ॥ नीनों परिषदों की संख्या कहते हैं तारा :.-: यू पी में प्रगम हमान की ] अम्पन्तर, मध्य और वाय परिषद् की संख्या कम से बारह हजार, चौदह हजार और सोलह हजार है । इसके बागे के स्थानों में दो हजार पर्यन्त कमशः दो दो हजार हीन है तथा इसके आगे भर्घ अर्ध प्रमाण है ।। ४९८ ।। विकोषा:-प्रत्येक की संख्या का प्रमाण इस प्रकार है [ कृपया चाट अगले पृष्ठ पर देखिए )
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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