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माथा ।४३४-४६५
वैमानिकलोकाधिकार
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अथ शगुक्तनय स्थानाश्रयेण सामानिकतनुरक्षानीकदेवानां प्रमाण गाथाद्वयेनाह
णयरपदे तस्मंखा ममाणिया च उगुणा य तणुरक्खा । वमहतुरंगरथेभपदातीगंधवणचणी वेदि ॥ ४९४ ।। सचेव य आणीया पतयं सत्तसनकक्खजुदा । पढम सममाणसमं न गुणं चरिभकखोचि ।। ४९५ ॥ नगरपदे तत्संख्या मामानिका चतुगुणाश्च तनुरक्षाः । वृषमतुरङ्गरथेभपातिगन्धर्वनर्तकी चेति ॥ ४९४ ।। सप्तव च आतीकानि प्रत्येक मतसप्तकक्षयुतानि ।
प्रथमः स्वममानसपः तद्विगुणं चरमकक्षान्तम् ॥ ४९५ ॥ एयरपवे । सोहम्मादिचके इति गायोत माराला नवसु स्थानेषु खुलसीवियति गायीक्ततसम्मगर विस्तारसंस्येव सामानिकसंख्येति मातव्यं संघ चतुलिता तनुरक्षकसंख्या पुषभतुरंगरमपवातिगन्धर्वनर्तको वेति ॥ ४ ॥
सशेष य । सप्तधानीकानि तानि प्रत्येक सप्तसप्तकक्षपुतामि । तत्र प्रथमकल: स्वस्प स्वस्थ सामानिकसम: तत उपरि तस्मात् हिगुरण घरमकापर्यन्तम् ॥ ४५ ॥
पूर्वोक्त नर स्थानों के आश्रय से सामानिक, अनुरक्षा और मनीफ देवों का प्रमाण यो पायाओं द्वारा करते हैं:
गाया :-नगर व्यास के सदृश्य नो स्थानों में सामानिक देवों का प्रमाण है। अर्थात् नगर म्यास के प्रमाण बराबर ही है । तनुरक्षकों का प्रमाण सामानिक देवों के प्रमाण से चौगुणा है। तथा ( १ ) वृषभ, ( २ ) घोड़ा, ( ३ ) रथ, (४) हाथी, (५) पयादे, (६) गन्धर्व और { ७) नतंकी इस प्रकार अनीक सेना सात ही प्रकार की है। प्रत्येक मेना सात सात कक्षाओं से संयुक्त है । प्रथम कक्ष का प्रमाण अपने अपने सामानिक देवों के प्रमाण स्वरूप है, इसके मागे परम कक्ष पर्यन, प्रत्येक कक्ष का प्रमाण दूना दूना होता गया है ।। ४९४, ४६५ ।।
विशेषार्थ : -- "सोहम्मादि च उक्के" इत्यादि गाथा सूत्र ४८८ के अनुसार तथा "चुलसीदीयअसीदी'' गाथा ४८ के अनुसार जो नव स्थान एवं उनके व्यास का प्रमाण कहा है, उन्हीं नव स्थानों में सामानिक देवों का प्रमाण नगर व्यास के बराबर ही जानना चाहिये । प्रत्येक स्थान के तनु रक्षकों का प्रमाण अपने अपने सामानिक देवों के प्रमाण से चौगुणा है, तथा वृषभ, घोड़ा, रथ, हाथी, पताति, गन्धर्व और नर्तकी ये सात अनीक मेनाएं हैं, जो प्रत्येक सात सात कक्षाओं से संयुक्त है। प्रथम कक्ष का प्रमाण अपने अपने सामानिक देवों के प्रमाण सदृश ही है। आगे चरम कक्ष पर्यन दूना दूना होता गया है। ( इसी का विशेष वर्णन गाथा १६८ के विशेषार्थ में दृष्य है )