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________________ गाषा: ४१३ वैमानिकलोकाधिकार ४२७ है, उतनी ही उनकी ऊंचाई है। वह कम से चार सौ, तीन सो, दो सौ, एक सो माठ मोर इसके बाद बीस बीस योजन हीन है ॥ ४९२ ।। _ विशेषार्थ :-सातों स्थानों के प्राकारों की चारों दिशाओं में गोपुरों की संख्या का जितना जितना प्रमाण है, उतने उतने योजन ही उन गोपुरों की ऊँचाई है । यथा--प्रथम स्थान के प्रकार की चारों दिशाओं में चार, चार सौ योजन ऊँचाई वाले ४.०, ४०० ही गोपुर द्वार हैं। दूसरे स्थान में ३०. योजन ऊंचाई वाले ३०० गोपुरद्वार, तीसरे स्थान में २०० योजन ऊँचे २०० गोपुरद्वार, चौथे स्थान में १६० योजन ऊँचे १६. गोपुर द्वार, पांचवें स्थान में १४०, छठवें स्थान में १२० और सातवें स्थान में १०० गेजन ऊंचाई वाले तथा तत लत ही प्रमाण को लिए हए गोपुरद्वार हैं। गोउरवासो कमसो मयजोयणगाणि तिस य दसहीणं । बीसूर्ण पंचमगे तो सबथ दसहीणे ।। ४९३ ।। गोपुरन्यास. क्रमशः शनयोजनानि त्रिषु च दशहोनं । विशोनं पचमके ततः सर्वत्र दशहीनम् ॥ ४६३ ।। गोउर । गोपुरण्यास: कमशः प्राची शतयोजमानि हतः उपरि त्रिषु स्पानेषु वाहीनं पोजमामि पश्चमस्थाने विशत्यूनयोजनानि । ततः परं सर्वत्र वाहीनयोजनामि ॥ ३ ॥ गाथार्य ...गोपुर द्वारों का व्यास क्रम मे १०० योजन, तीन में दश दश योजन होन, पाचवे में बोस योजन होन तथा इसके आगे सर्वत्र खश दशा योजन हीन है ॥ ४६३ ॥ विशेषाय :- प्रथम स्थान के गोपुर द्वारों का व्यास ( चौड़ाई) १०० योजन, दूसरे का ६. योजन, वोसरे का ८. योजन, चोये का ७० योजन, पाचवे का ५० योजन, छठवे का ४० योजन और सातवें स्थान के गोपुर द्वारों का व्यास ३० योजन प्रमाण है। पूर्वोक्त नगरों का विस्तार, उन के प्राकारों का उत्सेध, बाहुल्य आदि एवं गोपुरद्वारों का प्रमाण, जनकी ऊँचाई और व्यास का सश्चित वर्णन निम्न प्रकार है [कृपया चार्ट अगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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