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त्रिलोकसार
अधिक मास का प्रतिपादन करने के लिये सूत्र कहते हैं :
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गावार्थ :- एक मालू में एक दिन (३० मुहूर्त) की वृद्धि होती है, अत: बारह मास में १२ दिन की बढ़ाई वर्ष में १ मास की और पाँच वर्षों का समुदाय है स्वरूप जिसका ऐमे एक युग में दो माह की वृद्धि होती है ।। ४१० ॥
गाथा ४११
विशेषार्थ :- सूर्य गमन की १८६४ गलियाँ हैं। एक गली से दूसरी गली दो दो योजन ( ८००० मोल ) की दूरी पर हैं। एक गली में दूसरी गली में प्रवेश करता हुआ सूर्य उस मध्य के दो योजन अन्तराल को पार करता हुआ जाता है। इन पूरे अन्तरालों को पार करने का काल १२ दिन है. क्योंकि उसका एक दिन में एक अन्तराल पार करने का काल एक मुहूर्त ( ४८ मिनिट ) है, अतः एक दिन में एक मुहतं की, तीस दिन ( एक मास ) में ३० मुहूर्त अर्थात् एक दिन की. बारह मास में १२ दिन की, अढ़ाई वर्ष में ३० दिन ( एक मास ) की ओर ५ वर्ष स्वरूप एक युग में दो मास की वृद्धि होती है।
प्रकाशतरे :- एक वर्ष में १२ माह और एक माह में ३० दिन होते हैं। प्रत्येक ६१ व दिन एक तिथि घटती है अतः एक वर्ष के ३५४ दिन होने चाहिए किन्तु सूर्य के ( १८३x२ ) ३६६ दिन होते हैं अतः एक वर्ष में १२ दिन की, दो वर्ष में २४ दिन की, अढ़ाई वर्ष में ३० दिन की ( अढाई वर्ष में १३ मास का वर्ष होता है) और पाँच वर्ष में दो मास की वृद्धि होती है ।
प्राक्तनगाथार्थमेव गाथाष्टकेन त्रिवृणोति---
मासामी जुगणपती दुसवणे किले ।
अमिजिहि चंदजोगे पाडिदिवसहि पारंभो ॥१४११ ॥
आषाढ़ पूर्णिमायां युगनिष्पत्तिः तु श्रावणे कृष्णे ।
अभिजिति चन्द्रयोगे प्रतिपदिवसे प्रारम्भः ॥ ४११ ।।
मासाठपुरण | माषाढमासि पूर्णिमापरा उत्तरासमाप्तौ
पञ्चवर्षात्मकयुग
निष्पति: तु पुनः बावणमास करुणवक्षे प्रभिजिति चन्द्रयोगे प्रतिपद्दिवसे दक्षिणायनप्रारम्भः स्यात् ॥ ४११ ।।
पूर्वोक्त गाथार्थ का ही आठ गाथाओं द्वारा वर्णन करते हैं
गावार्थ :- आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन पाँच वर्ष स्वरूप युग की समाप्ति होती है,