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पापा। ३६६
ज्योतिलोकाधिकार
लागे प्रथम अन्तर है, उसके आगे दूसरा पथव्यास है, इसी प्रकार कम से जाते हये चौथे अन्तर के बाद पांचवां पथ व्यास है, इसके आगे द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र का ३३ योजन क्षेत्र अवशेष रह जाता है । लवण समुद्र के चारक्ष का प्रमाण ३३०४५ योजन है, इसमें से २ योजनों को पूर्वोक्त ३३३१४ में जोड़ देने पर ( ३३ +२ )=३५३६४ योजन द्वीप और समुद्र की सन्धि में पांचव! अन्तराल प्रा होता है। उसके आगे छठा पथभ्यास है इसके प्रार्ग ६ वा अन्तराल है। इस प्रकार कम से पाते हुए अन्त में १४ अन्तराम के मारे १५ मा जामा प गाय है। इन पन्द्रह पथच्यासों में ही १५ उदय स्थान हैं, जिसमें द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र में पहिला अभ्यन्तर बीथी का उदय स्थान उत्तरायण सम्बन्धी है, अता दक्षिणायन में चन्द्रमा के १४ उदय स्थान है।
उत्तरायण में चन्द्रमा के उदय स्थान :
लवए समुद्र सम्बन्धी धार क्षेत्र का प्रमाण ३३० योजन है। पूर्वोक्त प्रक्रियानुसार उदयस्थान निकालने पर १ प्राप्त होते हैं और उदय अंश शेष रहते हैं। इनका पूर्ववत् क्षेत्र बनाने पर १६ योजन क्षेत्र प्राप्त होता है । चन्द्र बिम्ब का प्रमाण योजन है, इसे ७ से समच्छेद करने पर३३० योजन प्राप्त होते हैं। योजन में से ३१७योजन क्षेत्र निकालकर बाह्म पथ से लगाकर नवमें अन्तराल के आगे जो पथ व्यास है, उसमें दे देने पर एक उदय स्थान होता है। इस प्रकार समुद्र में १० उदय स्थान हैं। इनमें नाम पथ का उदय दक्षिणायन सम्बन्धी ही है, अतः अग्राह्य है । कुल ६ उदय स्थान रहे। समुद्र सम्बन्धी चारक्षेत्र में अवशेष रहा २४० योजन क्षेत्र उसे दश अन्तराल में देना । इस प्रकार समुद्र का चारक्षेत्र समाप्त हुआ।
दीप सम्बन्धी जारक्षेत्र में पूर्व क्ति प्रकार से उदय स्थान ४ और अवशेष उदय मंश हैं, इन्हें पूर्ववत क्षेत्र रूप करने पर योजन क्षेत्र प्राप्त होते हैं। इसमें से योजन निकाल कर १० अन्तर में देना । इस प्रकार १.वो अन्तर समाप्त हुआ। अवशिष्ट रहे १११ योजन को ऊपर नीचे सात (७) से अपवर्तन करने पर योजन हुआ। इसे अम्मन्तर पथ ध्यास में देने से एक उदय स्थान बना। इस प्रकार द्वीप में चन्द्रमा के उत्तरायण सम्बन्धी ५ उदम स्थान हुए।
विशेष :-क्षरण समुद्र के बारक्षत्र में प्रथम बाह्य पथव्यास है, उसके अभ्यन्तरवर्ती धागे आगे प्रथम अन्तर, द्वितीय पय व्यास, द्वितीय अन्तर इस प्रकार क्रम से जाते हुए ३ अन्तर के आगे १० वी पय व्यास है, और उसके आगे २४० योजन क्षेत्र अवशेष रहता है, अतः द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र के अवशिष्ट ३३१४ योजनों में उपयुक्त २.४ पोजन मिलाकर ३५३३४ योजन १० व अन्तराल को देने से १० वा अन्तराल सम्पूर्ण हो जाता है। इसके आगे ११ वा पथ प्रयास, ११ वा