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गया । ३३६
ज्योतिलोकाधिकार
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19x1000=1016) PERS
की कितनी शलाकाएं होंगी। इस प्रकार त्रैराशिक करने पर ( प्राप्त हुए। इनमें ६२ दिनगति शलाकाएं हैं, छातः ६९ ही उदय स्थान हैं। अवशेष २४६ उदय ग्रंथों का पूर्व क्षेत्र निकालने पर योजन क्षेत्र प्राप्त होगा। इसमें से ६ योजन क्षेत्र निकाल कब द्वीप और वैदिका की संधि में जो पथ व्यास है, उसे देकर उस पथ व्यास को पूर्ण करना । ( ¥ – H ) = '' अर्थात् २ योजन अवशेष रहे, इन्हें सन्धि पथ व्यास के आगे अन्तराल में देना । बासठ (६२) दिनति शलाका के ६२ उदय हैं, और आगे अभ्यन्तर पथ व्यास में एक एक उदय है, इस प्रकार वेदिका रहित द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र में सन्धि उदय सहित ६४ उदय हैं ।
विशेष :-- लवण समुद्र सम्बन्धी चारक्षेत्र में प्रथम पथव्यास है, उसके आगे अन्तर है, उसके मागे पुनः पथ व्यास, पुनः अन्तराल इसी क्रम से जाते हुए ११८ वे अन्तराल के आगे ११६ व पथ यस है, औरयोजन क्षेत्र अवशेष रहता है वेदिका सम्बन्धी चार क्षेत्र में से ३ योजन क्ष ेत्र लेकर इसमें मिला देने पर वे + ) समुद्र और वेदिका की सन्धि में ११२ वाँ अन्तराल प्राप्त हो जाता है। इसके आगे १२० व पथ व्यास और उसके भी आगे १२० व अन्तराल है, तथा इसके आयोजन क्षेत्र अवशेष रहता है। द्वीप सम्बन्धी चारक्षेत्र में से ३ योजन क्षेत्र ग्रहण कर योजन में मिला देने पर (१२१ पथ व्यास प्राप्त हो जाता है। इसके आगे १२१ वमन्तराल है। इसी प्रकार क्रम से जाते हुए अन्त में १८३ वें अन्तराल के आगे १८४३ पथ व्यास है । इन १८४ पथव्यास प्रमाण १८४ उदय स्थानों में से एक उदम स्थान जो कि बाह्य वीथी का है, जिसे दक्षिणायन में गिना गया है, उसे घटा कर उत्तरायण में सूर्य के उदय स्थान १५३ हैं । ( ६२+२+११ε= १८३ उदय स्थान हैं )
चन्द्रमा के भी अयन भेद किये बिना द्वीप सम्बन्धी १८० योजन प्रमाण वाले चारक्ष ेत्र में ५ उदय स्थान एवं समुद्र सम्बन्धी ३३०६ योजन प्रमाण वाले चारक्ष ेत्र में १० उदय स्थान होते हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर चन्द्रमा के उदय स्थान १५ होते हैं ।
दक्षिणायन में चन्द्रमा के उदय स्थानों का कथन :
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"पथ व्यास पिंड होणे" इत्यादि गाथा ३७७ के अनुसार चन्द्रमा के दिनगति क्ष ेत्र का प्रमाण '७' योजन है। जबकि १३७ योजन क्ष ेत्र का एक उदय स्थान होता है तब द्वीप सम्बन्धी १८० योजन प्रमाण वाले चार क्षेत्र में कितने उदय स्थान होंगे? इस प्रकार (१६) - ४२ अर्थात् ४ उदय स्थान प्राप्त हुए और रहे । यथा - जबकि १ उदय स्थान का ५५
राशिक करने पर
उदय अंश शेष उदय अंशों का
योजन क्ष ेत्र होता है, तब
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