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मियाकसार
३३२
पाया ३८२
भागमा
हामिचये एकषष्टिविभवलस्य
विद्धानिचयमिति सम्पास्यापवर्तिते लब्धमुहूर्त एक: १। एवं त्वष्टिमुहूर्तानामेतावत क्षेत्र गते ३१६२२ एकमुहूर्त ध्य कियत् क्ष ेत्रमिति सम्पात्यापतिते लब्धमिदं ५२७३ मा प्रति सत्रहानिय स्यात् । इदं दक्षिणायने तम्मासे तापक्ष ेत्र अपनयेत्तमःक्षत्र ज्यात । उत्तराय समासतापक्षेत्र युक्वात् तमः क्षेत्रे मपनयेत् । एवं कृते विवक्षितमा विक्षितपरिषो लाक्तमसेविषयक्षेत्रमागच्छति ॥ ३८२ ॥
सर्व परिथियों में ताप और तम लाने का विधान कहते है :
गावार्थ :- सुमेरु पर्वत की परिधि अभ्यन्तर बीथी की, मध्यम वीथी की, बाह्य बोधो की और जल में लवर समुद्र के व्यास के छठवें भाग को पांच ) परिधियों को साठ से भाजित करने पर जो जो लब्ध प्राप्त हो उसे सूर्यस्थित माह के ( रात्रि और दिन के ) मुहर्तीों से गुणित करने पर ताप और तम का प्रमाण प्राप्त होता है ।। ३८२ ।
विशेषार्थ :- सुमेरु पर्वत का विष्कम्भ १०००० ( दश हजार ) योजन है ।
अभ्यन्तर art at faष्क्रम्म-जंम्बद्वीप का प्रभास १०००००- ( १८०४२- १३६०८ ६६६४० योजन प्रमाण है ।
मध्यम वयो का विष्कम्भ- चारक्षेत्र ५१०२ – २५५ योजन अर्ध चारक्षेत्र । २५५ - १८० ( जम्बूद्वीप का चारक्षेत्र ) = ७५ x २ = १५० योजन उभय पार्श्व भागों का प्रमाण है, अतः १०००००+ १५० = १००१५० योजन मध्यम वीथी का सूची व्यास प्राप्त हुआ ।
बाह्य वीथी का किम्भ :- लवण समुद्र सम्बन्धी चार क्षेत्र ३३० x २ = ६६० योजन उभय पार्श्व भागों का हुआ, अतः ( जम्बूद्वीप का व्यास ) १०००००+ ६६० = १००६६० योजन बाह्य वीथी का विष्कम्भ है ।
जलष्ठ भाग का त्रिष्कम्भ लवण समुद्र का बलय व्यास २००००० योजन है। छुटे भाग क) विष्कम्भ प्राप्त करने के लिये इसमें ६ का भाग देने पर ( 200000 ) १०००००० अर्थात् ३३३३३३ योजन हुआ। उभय पार्श्व भागों का ग्रहण करने पर ३३३३३३ x २ = ६६६६६३ योजन हुआ। जम्बूद्वीप का व्यास १०००००+ ६६६६६३ योजन - १६६६६६६ योजन जल पष्ठ भाग का विष्कम्भ है ।
"विक्खंभवग्गदहगुण"... गाथा ६६ के कसूत्रानुसार उपयुक्त पाँचों विष्कम्भों की परिवि निकालने पर सर्व प्रथम
(१) मेरु को परिधि का प्रमाण ३१६२२ योजन
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