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________________ ३१८ उपर्युक्त अर्धं प्रमाण के ( १६६६६८४२६३६ मील त्रिलोकसार बाथा : ३७३ साथ रखने से वेदी मे निकटवर्ती सूर्य का अन्तर ४९९९९३ योजन प्रमाण प्राप्त होता है। लवर समुद्र का वलय व्यास २ लाख योजन है। यहाँ ४ सूर्य हैं, जो एक एक परिधि में दो दो हैं। लवण समुद्र की अभ्यन्तर वेदी से ४६६६९६५ योजन आगे जाकर सूर्य का विमान है, जिसका विस्तार योजन ( ३१४७ मील) है। इससे ६६६६६६ ] योजन आगे जाकर परिधि है, उसमें भी ६ योजन व्यास वाला सूर्य है। इससे ४९६६६३१ योजन जागे जाकर लवण समुद्र को बाह्य वेदी है, अतः इन सबका योग करने पर ( ४६६६C14+ ई + EEEEET+ ई + ४६६६६३ - २००००० योजन लवण समुद्र का व्यास हो जाता है । लवण समुद्र में चन्द्रों का अन्तर : { २००००० - ( 24 × 7 ) } -- ६६६६६६ योजन एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का अन्तर ९९९९९४१ ÷ २=४१६६६३३ परिधि से चन्द्र और चन्द्र से परिधि का अन्तर ४६३६+14+ TCC६६=++++४१९६६३१ = २ लाख व्यास हो गया । घातकी खण्ड के सूर्यो का अन्तरघातकी खण्ड का वलय एवं चन्द्रों की संख्या १२, १२ है । दोनों का व्यास क्रमश: हैं और { kerna० – { kiXN ) }+ ३६६६६५१ योजन सूर्य से सूर्य का अन्तर ६६६६५६३÷२-३३३३२१ योजन परिधि से सूर्य का अन्तर । — व्यास ४ लाख योजन है। सूर्य योजन है । धातकी खण्ड के ४ लाख व्यास में ६ जगह एक एक परिधि में दो दो सूर्य हैं, अतः इन छहों परिधियों के बीच (६) सूर्यों से सूर्यों के अन्तराल ५ होंगे, और बाह्य अभ्यन्तर की अपेक्षा परिधि के अन्सर दो होंगे। अत : १६६६५१८ × ५ - ३३३३२५६६५ योजन पत्र अन्तरालों का क्षेत्र । ६६६६५१ योजन दो अन्तरालों का क्षेत्र | ३३३३२४२ 111 TEX = योजन ग्रह सूर्यो का क्षेत्र । + योजन बलय व्यास प्राप्त हो जाता है। IES FE ****
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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