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त्रिलोकसार
पाषा : ३३
विगुणा खलु विदेहपर्यन्स' । हिमवति पर्वते १४१००००००००००००००० हैमवतक्षेत्रे २८२०.०००.०० ०००००.० महाहिमवति पर्वते ५६४००००००००००००.०० हरिक्षेत्रे ११२८०००००००००००००० निषध पर्यते २२५६००००००००००००००. विवेहक्षेत्र ४५१२०००००००००००००० सतः परं बलिरदलितक्रमो ज्ञातव्यः । मौलपवते २२५६.८०......०००००० रम्यकक्षेत्र ११२८००००००००००००००० गविमरवते ५६४०००...000000०० हरण्यवतक्षेत्र २८२०.००००000000००० शिक्षरिपर्वते .१४१००००००००००००००० ऐरावतक्षेत्र ७०५०००००००००..... ॥ ३७२ ॥
उपयुक्त गलाकाओं के द्वारा प्राप्त हुई ताराओं की संख्या कहते हैं--
मायार्थ :--भरतक्षेत्र को ताराओं की संख्या ३०५ कोडाकोड़ी है। इसके बाद विदेह पर्यन्न यह संख्या दूनी दूनी और विदेह के बाद ऐरावत क्षेत्र तक की संख्या क्रम में आधी आधी होती गई है ।। ३७२।।
विशेषार्थ :- भरत क्षेत्र में ७०५ कोडाकोड़ी तारागण हैं। इसमें आगे विदेव पर्यन्त दूनी दूनी और ऐरावत क्षेत्र तक अर्ध अधं तारा होनी गई है। जैसे :
क्षेत्र और पर्वतों के नाम
ताराभों की संख्या । क्षेत्र पर्वतों के नाम | ताराओं की संख्या
२२५६. कोड़ाकोड़ी । ११२८० " ,
भरतक्षेत्र हिमवन्पर्वत हैमवतक्षेत्र महाहिमवन् पर्वत हरि क्षेत्र निषधपर्वत विदेह क्षेत्र
७०५ कोडाकोडी | नील पर्वत
रम्यकक्षेत्र । २८२० " " । रुकिम पर्वत
हैरण्यवतक्षेत्र ११२८०" " शिखरि पर्वत २२५२०॥ " ऐरावतक्षेत्र ४५१२०७ ॥
२८२० १४१०
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अथ लवणाविपुष्कराधान्तस्थितचन्द्रागिणामन्तरमाह
सगरविदलबिबूणा लवणादी सगदिवायरद्वहिदा । सूरतरं तु जगदीभासण्णपइंतरं तु तस्म दलं ।। ३७३ ।। वकरविदल बिम्बोम लवणादेः स्वकदिबाकराहिता। सूर्यान्तरंसु जगत्यासनपथान्तरं तु तस्य दलं ॥ ३७३ ॥