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________________ गाथा : ३७१-३७२ ज्योतिर्लोकाधिकार उदिसय भजिदतारा सगद्गुण दुगुणमलसमभत्था | मरहादि विदेहोचि य तारा वस्से य वस्सधरे ।। ३७१ ।। नवतिशत भक्तताराः स्वऋद्विगु द्विगुणशलासमभ्यस्ताः । भरतादिविदेहान्तं च तारा: वर्षे च बधरे ॥ ३७१ ॥ ३१५ एउदि । नत्र विक्षेत्र प्रसारणरूपकशल कान लाहान ११० चन्द्रवमाराश्चेत् १३३६५००००००००००००००० भरता१ । २ । ४ । ८ । १६ । ३२ । ६४ । ३२ | १६ | ८ | ४ । २ । १ कियशिक विधिनाथ शिलभक्तला [७.५०००***०००००००० स्वकीयस्वकीयगुणशलाका समस्यस्ता भरताविविधपर्यन्तं वर्षे क्षेत्रे पर्यधरे पर्वते च तारा रस्मरतारा: स्युरिति भवन्ति ॥ ३७१ ॥ जम्बूद्वीपस्थ भरतादिक्षेत्र और कुलाचलादि पर्वतों की वाराओं का विभाजन दो गाथाओं द्वारा करते हैं गाथार्थ :- भरत क्षेत्र से त्रिदेहपर्यन्त की शलाकाऍ दुगुनी दुगुनी होती गई हैं। जम्बूद्वीप सम्बन्धी ताराओं की संख्या को १९० से भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसको अपनी अपनी शलाकामों से गुणा करने पर तत् तत् क्षेत्र व पर्वत सम्बन्धी ताराओ की संख्या प्राप्त हो जाती है ।। २७१ ।। विशेषार्थ :- जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा से सम्बन्धित ताराओं का प्रमाण एक लाख तेतीस हजार नव सौ पचास कोटाकोडी है। इस प्रमाण में १६० का भाग देने पर ७०५ कोड़ा कोड़ी लब्ध प्राप्त होता है । यही प्रथमशलाका है। ये भरतक्षेत्र से विदेहपर्यन्त दूनी दूनी होती गई हैं तथा विदेह से आगे के क्षेत्र व पर्वतों पर अर्थ अर्थ होती गई हैं। जैसे - १ | २ | ४ | ८ | १६ | ३२ । ६४ । ३२ । १६ । ६ । ४ । २ । १ । अथ लब्धांकमुच्चारयति - पंचचरसचा कोटाकोडी य मरइताराम | दुगुणा हु विदेहोचि य तेणपरं दलिदद लिकमा || ३७२ || पनोत्तरशतकोटिकोट्यः च भरतताराः । द्विगुणाहि विदेहान्तं च तेन परं दलितदलितक्रमः ।। ३७२ ।। पंतर परसप्तशतकोटिकोटयः ७०५०००००००००००००० भरतताशः स्युः । द्विगुण
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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