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________________ ३०४ त्रिलोकसार पापा1३६० ३ ३ कम कर देने से [ { ७४ (६-१)=(७४५)=४२-३५=७ ] कम हो जाते हैं जबकि प• छे' x ३ कम करना है तो पल में एक अङ्क कम होता है। यदि साधिक प• छे०२ कम करने हैं तो ५० छ में से कितने अङ्क कम होंगे ? इस प्रकार त्रैराशिक करने से साधिक ५०.X छे' x १. साधिक प्राप्त होते हैं । अर्थात् प. ॐ में से माधिक ! कम होंगे। इसप्रकार [( प छै० साधिक ११:० ५३ : जम्बूद्वीप के अधच्छेद । यदि असंख्यात का ।। असं०५ / १० १३. जम्बूद्वाप क अघच्छद। याद प्रतीक चिह्न हो तो यह संख्या निम्न प्रकार से लिखी जा सकती है। यथा-(-) xछे छे ४३ )-छे छ । अर्थात् एक राजू के अधच्छेदों में से छह अधिक जम्ब दीप के अर्धच्छेद ( छ । छे ) कम करने से समस्त द्वीप समुद्र गस चन्द्र सूर्यों की संख्या प्राप्त करने के लिए गच्छ का प्रमाण होता है। अथ ज्योतिबिम्बसंल्यानयनगच्छस्यादिमाह पुरखरसिंधुभयधणे पउघणगुणसयछहत्तरीपममो । च उगुणपचमो रिणमवि अहकदिगृहमुवरि दुगुणकर्म ।। ३६० ।। पुष्करसिंधूभयधनं चतुर्घनगुणशतषट्सप्ततिः प्रभवः । चतुगुणप्रचयः ऋणमपि अष्टकृतिमुख मुपरि द्विगुण क्रमं ॥ ३६॥ पुण्जर। पुष्करसमुनस्याच सरधनमानेतन्यं । कमिति चेत् । 'माशी प्रायोको गुण दुगुण कमे इति ज्यायेन पुरोत्तघस्यावितः १४४ पुष्कर सिपोराविनिगुणा १४४४२ भवति । सं मुझं कृत्वा पद ३२ हत मुखं १४४४२४ ३२ मुखंस्थितेन चिकेन २ पदं ३२ पुरणमित्या स्थापिसे १४४४६४ प्राविधनं स्यात् । ध्येकपा ३१ मर्घ ३. नवय ४ पुलो गच्छ: 3४४४३२ प्रत्रापस्तन द्विकमुपरितमचतुरकरणापवस्वं प्रशिक्षिकेन पवे पुएिते एवं ३१४ ६४ पस्मिन्नुत्तरधने ऋरानिक्षेपार्थ उत्तरधनगतगुणकारस्य ३१४ ६४ ऋस १४१४ गुणकारं ६४ सदृशं प्रदर्य १४६४ प्रारमप्रमाणका ऋणं निक्षिप्य ३२४६४ पदमप्पाविषने १४४४६४ तथा सार अवश्यं चतुरुत्तरचत्वारिंशयारूपे १४४४ ६४ पाविधनगुण्ये द्वात्रिंशमूपोत्तरधनगतगुष्ये ३२४६४ मिलिते सति पर्धनगुणितषट्सप्तस्थुसरासरूप १७६४६४ पुष्करसिधूभयपनमेष ज्योतिबिम्बानयनगच्छस्य प्रभवः स्यात् । एवमुसरत्र वारुणियरतोपादिषु सर्वत्र प्राक्तनावितः १४४४२ द्विगुणक्रमेण स्थित मुलं १४४४२४२ पदहलं कृत्वा १४४४२४२४६४ विकद्वयमन्योन्य संगुण्य चतुःषधिरने स्थापित प्राविधनं १४४४६४४४४१ येकपटत्याविमा उतरवामप्यानीय ३४४४६४ तस्मिन्नपतिताहिक
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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