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________________ क : गामा : ३५८ ज्योतिर्लोकाधिकार .........- { ७५.०० यो०४२-प्रदेश : (२-१)- १ }--१ प्रदेश हीन डेढ़ लाख लब्ध प्राप्त हुआ, . अतः संन्यात सहित मुच्यंगुल के अर्धच्छेदों के प्रमाण वरावर द्वीप समुद्र हुए । अन्त में अभ्यन्तर बेदी सें इतने आगे जाकर राजू पड़ता है। अधं अर्थ की अर्थसंदृष्टि निम्न प्रकार है : मान लीजिए-सूच्यगुल का प्रतीक र है, जिसके अधच्छेद करते करते चार प्रदेश प्राप्त हो जाते हैं। योजन--७.५०.०, ५१०, १००, ५०० ... ............ ........... सूच्यगुन–२, ३, १३ : ... ..... ... प्रदेश-४, २, और १ इस प्रकार अचं अधं को अर्थ संदृष्टि हुई । अङ्कस दृष्टि में- ६४, ३२, १६, ८, ४, र ओर १ है। इस प्रकार डेड इंढ़ लाख योजन के क्रम से लवण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्रों को जाकर क्या होता है, उसे कहते हैं :-- लवणे दुप्पडिदेव जंबूप देजमादिमा पंच । दीउवही मेरुसला पयदुवजोगी ण छन्चेदे ।। ३५८ ।। लवणे तिः पतितः एक जम्बो देहि आदिमाः पञ्च । द्वीपोदधयः मेगसलाः प्रकृतोपयोगिन: न षट् चंते ॥ ३५८ ॥ लवणे लवणसमुने दिः छेवः पतितः सत्रक जम्मूतीपे देहि । तत्र थेवे माविमाः पञ्च द्वीपोवधिच्छेवा: मेरुशलाका च षडेते प्रकृते ज्योति विम्बातयने उपयोगिनो न भवन्ति इत्यप्रेऽपमेष्यते ॥ ३५८॥ गायार्थ :- लवरण ममुद्र में दो अघंच्छेद पड़ते हैं। उन दो में में एक अधं चंद्रद जम्बूद्वीप का ( एक लवण समुद्र का) है। आवि के पाच द्वाप समुद्री के पांच अर्धच्छेद और मामलाका का एक, ऐसे ये छह अधच्छेद प्रश्त में अर्थात ज्योति बिम्बों का प्रमाण लाने में उपयोगी नहीं विशेषार्थ :-लवण समुद्र में दो अघच्छेद पड़ते हैं, उनमें से एक अच्छेद जम्बूद्वीप का मानना, क्योंकि जम्बूद्वीप का पचास हजार मिलाने पर ही दो लाख होते हैं। इन अचंच्छेदों में जम्बूर्वीपादि पांच द्वीप समुद्रों के पांच अर्धच्छेद और मेमशलाका (राजू को आषा करते समय जो प्रथम अधंच्छेद कहा था उस ) का एक, ऐसे ये छह अधच्छेद ज्योतिबिम्बों का प्रमाण लाने में कार्यकारी नहीं हैं, कारण कि तीन द्वीप और दो समुदों के ज्योतिबिम्बो का प्रमाण ३४६ गाथा में
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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