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त्रिलोकसाब
बाया : ३५७
उपर्युक्त कमानुसार अर्थ अर्थ भाग करते हुए अब एक अंगुल प्राप्त होगा, तम ७६८००० अंगुलों के १९ अर्थच्छेद प्राप्त होते हैं । अर्थात् १९ वाय अर्थ अर्थ करने पर एक अंगुल अवशेष रहता है। इन १७ और १२ अर्थच्छेदों को मिला देने पर जो लब्ध प्राप्त होता है, उसका नाम संख्यात है। तथा प्राप्त हुए १ अंगुल के प्रदेश बनाकर उन्हें उपयुक्त क्रम से अर्ध अर्थ करते हुए बितनी बार में एक प्रदेश प्राप्त हो उतने ही सूच्यंगुल के अच्छे हैं। इन सूच्यंगुल के अच्छेदों में उपयुक्त रूप से प्राप्त हुए संख्यात का प्रमाण मिलाने के लिए ही 'संखेज्ज व संजुद' इत्यादि गाथा कहते हैं ।
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संग्वेज्जरुव संजूद मूई अंगुल द्विदिष्यमा जाव 1
गच्छति दीवजलही पहदि तदो मादलक्खेण || ३५७ ॥
संख्येय रूप संयुक्त सूच्यं गुल छेदमा यावत् ।
गच्छन्ति द्वीपजलयः पतति ततः साधलक्षण ।। ३५७ ।।
संखेज । संख्यातरूप संयुतसूच्यंगुल छेदत्रपारगं यावत्तावन्ति ते द्वीपजलयः सत्छेदसमाप्तौ ततः परं सर्वेषु द्रोपोवधिषु सार्धलक्षमेव गत्वा गत्वा पतति । एतत्कथमिति चेत्, अन्सवर ७५००० गुण २ गुखियं १५०००० प्राविविहोणं १५०००० क्रणुत्तरभमिनं । इति कृते भवति । ७५००० *42 । । --------------- । ५०२ । ३ । ३ । ३ । । ४ । २ । १ टि तथा संष्टि: ६४ । ३२ । १६ । ६ । ४ । २ । १ । एवं साधकमेव लवण समुद्रपर्यन्तमसंख्या द्वीपसमुद्र
७५०*० २x२
॥ ३५७ ॥
गावार्थ :- जब तक संख्यातरूपों से सहित सुच्यंगुल के अच्छेदो का प्रमाण प्राप्त होता है तभी तक वे द्वीपसमुद्र पूर्वोकमानुसार अभ्यन्तर वेदी से आगे जाकर राजू के पतन रूप क्षेत्र को प्राप्त होते हैं, उसके पीछे सर्वद्वीप समुद्रों में डेढ डेढ़ लाख ( १५०००० ) योजन आगे आगे जाकर राजू पड़ता है || ३५७ ।।
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विशेषार्थ :- सूच्यंगुल के अच्छेदों में संख्यात जोड़ने मे जो प्रमाण प्राप्त होता है, उतने ही द्वीपसमुद्रों में पूर्वोक्त अर्ध-अधनुक्रम से राजू का पतन होता है, उसके बाद सर्व द्वीप समुद्रों में डेट डेढ लाख योजन आगे जा जाकर हो राज का पचन होता है। इसी को स्पष्ट करते हैं - "अधरणं गुतागुणियं आदिविहां हणूनर भजिनं" - इस करण सूत्रानुसार अम्लघन ७५००० और गुणकार २ है । ७२००० में २ का गुणा करने से १५०००० ( डेढ़ लाख ) होता है, इसमें से आदिविहीणं अर्थात् आदि धन एक प्रदेश घटा कर ( क्योंकि आदि धन एक प्रदेश है ) रूऊत्तर अजिनं अर्थात् एक होन गुणकार (२०११) का भाग देने पर एक प्रदेश होन डेढ़ लाख योजन प्राप्त होते है । जैसे :--