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. ज्योतिर्लोकाधिकारः
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अथ व्यन्तरलोकाधिकार निरूप्य तदनन्तरोद्दे शभा ज्योतिर्लोकाधिकारं निरूपयितुकामस्तदादी ज्योतिबिम्ब संख्याप्रदर्शनगर्भ ज्योतिर्लोकचैत्यालयवन्दनालक्ष मङ्गलमाह
बेसदकम्पपर्णगुलकदिहिदपदरस्स संखभायमिदे ।
जोइसजिणिंदगेहे गणणातीदे णमंसामि || ३०२ ।। द्विशतषट्पञ्चाशदङ्ग लकृतिहतप्रतरस्य संख्यातभामितान् ।
ज्योतिष्फजिनेन्द्रगेहान् गणनालीतानस्यामि ॥ ३०२ ।। देसक । छायामात्रमेवाः ॥ ३०२ ॥
व्यन्तरलोकाधिकार का निरूपण करके उसके अनन्तर उद्देश्य को प्राप्त ज्योतिर्लोकाधिकार के निरूपण की इच्छा रखने वाले आचार्य सर्व प्रथम ज्योतिषदेवों के विम्बों की संख्या दिखाने के लिए ज्योतिर्लोक के चैत्यालयों को नमस्कार करने रूप मंगल कहते हैं :
गाथा :-जगत्मतर को दो सौ छप्पन ( २५६ ) अंगुलों के वर्ग ( २५६ ४२५६= ६५५३६ ) का भाग देने पर ज्योतिष देवों का प्रमाण प्राप्त होता है। ज्योतिष देवों के संख्यात भाग प्रमाण ज्योतिबिम्ब एवं चैत्यालय हैं, जो असंख्यात है। उन्हें मैं (नेमि चन्द्राचार्य ) नमस्कार करता
विशेषार्प :-दो सौ छप्पन अंगुलों का वर्ग करने से ( २५६ ४ २५५ )६५५३६ वर्ग मंगुल अर्थात् पण्णाट्ठी प्राप्त होती है, अता जगत्प्रतर : ६५५३६ वर्ग अंगुल- ज्योतिष देवों का प्रमाण । ज्योतिषटेन संख्यात=ज्योतिबिम्ब और चैत्यालय, जिनकी संख्या असल्यात है, उन्हें मैं नमस्कार करता है।
पप तगेहपज्योतिष्कदमाह