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पाया । २०२-२०३ छोकसामान्याधिकार
१६७ तृतीय पृथ्वी का हानि चय उपयुक्त रीति से निकालने पर । घ०२ . २२३० प्राप्त होता है । (१) १७५० ३४३ अंक। (२) १६० ० । (३) २०१० ३ १०८ 01 (४) २२ १०, २१, ६३० । (५) २४ घ० १ ० ५४ अं०1१६) २६ ध०४ अं० । (७) २७ ध०, ३ ह. २ ०। (८) २६ ध. २हन, १७ अं| (E) ३१ ध० १ हाथ प्रमाण है।
चतुर्थ पृथ्वी का हानि चयः-४ धनुष । हात २०४० प्राप्त होगा । अत:-(१) ३५ घ. २६, २०१०। (२) ४. ध.१७ अं०। (३) ४४ ध०,२, १३०। (४) ४६ घ. .। (३) ५३ घ०, २६०, ६६ प्र० । (६) ५८ घ०३३ अं० । और (७) २२५० २ हस्त प्रमाण उत्सेध है।
पञ्चम पृथ्वी में हानि वृद्धि चयका प्रमाण १२ १०२ हाथ प्राप्त होगा । अत:-१) ७५.५० (२) ८७ प. २ ह. (३) १०० १० (४) ११२५०२ ० (५) १२५ १० प्रमाण उत्सेध-होगा। षष्ठ पृथ्वी में हानि-वृद्धि का चय-१.२ १६ अंक प्राप्त होगा । अतः-(१) १६६ ध.२० १६ अं०। (२) २०८ घ.ह.. और (३) २५० ५० प्रमाप उत्सेध है । सक्षम पृथ्वी के अवषि स्थान नामक अन्तिम पटल के नारकियों का उत्सेध ५०० धनुष प्रमाण है। अथ नारकाणामधिक्षेत्रमाह---
रयणप्पामुदनी चलो कोमा ग भोहिग्लेन तु । तेण परं पडिपढवी कोसद्ध विवलियं घोदि ॥२०२।।
रानप्रभाधिव्याश्चत्यारः क्रोशाश्चावधिक्षेत्रं तु ।
ततः परं प्रतिपृथ्वि क्रोशाविवजितं भवति ।।२०२॥ यण । छायामात्रमेवानी। नारकियों के अवधि क्षेत्र का प्रमाण कहते हैं:
गामार्थ:-रत्नप्रभा पृथ्वी का अवधि क्षेत्र चार कोस प्रमाण है । इसके बाद प्रत्येक पृथ्वी में आषा आषा कोस हीन होता गया है ।।२०२।।
विशेषाध:-रलप्रभा पृथ्वी के नारकी जीव अपने अवधिज्ञान से ४ कोस सक मानते हैं। गरा प्रभा के ३३ कोस, बालुकाप्रभात । कोस, पङ्क प्रभा के २३ कोस, धूमप्रभा के २ कोस, तमःप्रभा के १३ कोस और महातमप्रभा के नारकी जीव मात्र १ कोस वक ही अपने अवविज्ञान से जान सकते हैं, इसके भागे नहीं। अथ नरकात्रि:मृतस्य जीवस्पोत्पत्तिनियममाह--
णियादो णिस्तरिदो णरतिरिए कम्मसग्णिपजचे । गम्भभवे उत्पादि सत्तमपुचीद तिरिए व ॥२०३।।
निरयानिःसृतः नरतिरश्चीः कमसजिपर्याप्त । गर्भभवे उत्पथते मप्तमपृथिव्यास्तु तिरश्चि एव ।।२०३।।