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माथा।६०१
फोकसामान्याधिकार
चतुर्थ पङ्क, प्रभा पृथ्वी का हान चप सागर है, अत: (+) आरा १२ मारा (3+1) -- ५५,३ तारा, ४ चर्चा ७.५ तमको ४६ घाटा और ७ घटा इन्द्रक की उत्कृष्टायु " अर्थात् १० सागरोपम प्रमाण है।
पनम धूम प्रभा पृथ्वी का हानि माय: सागर है 1 हो:. सागर में मिलाने पर { +) = १ तमका १, २ भ्रमका , ३ झषका, ४ अनन्द्रा और५ तिमिश्रका इन्द्रक की उत्कृष्टायु " अर्थात् १५ सागर प्रमाण है।
षष्ठ तमः प्रभा पृथ्वी का हानि चयः सागर है, अतः १ हिम (+1) = " सागर २ वालि ; ३ लल्लकि । अर्थात् २२ सागर प्रमाण उत्कृष्टायु है।
राम महातमः प्रभा पृथ्वी का हानि च है, अत: अवधिस्थान नामक अन्तिम पटल की उत्कृष्टायु । २३+) =३३ मागगेपम प्रमाण है । ऊपर ऊपर की उत्कृष्टायु हो एक समय अधिक करने पर नीचे नीचे के पटलों की जघन्यायु हो जाती है। अथ तेषां नारकाणां पटलं प्रत्युत्मेघमाह
पढमे मत्त नि छक्क उदयं घणुरयणि अंगुल सेसे | दुगुणकर्म पदमिदे ग्यणिनियं जाण हाणिचयं ॥२.१।।
प्रथमे सप्तत्रिषटक उदयः धनूरन्या गुलानि शेषे ।
द्विगुण क्रम प्रथमेन्द्र के रलित्रयं जानीहि हानिचयम् ॥२०॥ पहमे । प्रथमपिण्याचरमपटले सप्तत्रि ३ षट्क ६ सवयः धनुरग्यङ्गुलामि । द्वितीयादिपृष्ण्याचरमपटले दिगुण कम, प्रथमपृष्ध्या; प्रथमेन्द्र के परिमंत्रयं । एतस्मृत्वा हानिधर्म सामोहि । हामियम साधन कमिति चेत्, प्रावि ३ मन्ते ए हस्त ३ अंगुल ६ शोधयिावा हस्तस्याने स्फेटयिया ७६ रूपोनाबहुते याही भागो भवेदण्ड हस्ताहिकं कृत्वा भक्त हस्तः २ शेषमडगुलं कृत्वा । सत्र प्राक्तनागुलं मेलविरवा का भक्त लम्पमङ्गुलं ८ शेषे षड्भिरपबतिते अगुलं : एतत्सर्व प्रपष्पा हानिमयं वंश अंभावं उपरितमत्वस्वजातो मेलयिस्वा दण्डा पृयकृतेषस्तनपटलवेहोत्सेषः १२८ भात पुनस्तद्धानिधर्म दारा मेलने १।३.१७० सरपस्तानदेहोत्सेषः । एवमेव सर्वत्र पटले योज्य: । एवं वितोयादि पृषिष्या हानिधयरसेपश्चानेतन्यः ॥२०॥
प्रत्येक पटल के नारकियों के शरीर का उत्सेध कहते हैं :
गाषाण:-प्रथम पृथ्वी के अन्तिम पटल के नारकियों के शरीर को ऊंचाई ७ धनुष तीन हाथ और छह अंगुल प्रमाण है। शेष द्वितीयादि पृध्वियों के अन्तिम पटल में रहने वाले नारकियों कर उत्सेध क्रमशः दना दूना है। प्रथम पृथ्वी के प्रथम इन्द्रक में रहने वाले नारकियों का उत्सेध तीन हाथ प्रमाण है । इमे ही हानि चय जानो ॥२.१||