SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिलोकसाब पाषा:१५८ सम्पूर्ण क्षेत्रफलों का योग :--- १. लोक के नीचे तीनों परनों से अवरुद क्षेत्र का क्षेत्रफल - जगतप्रतर x ६० हजार २. लोक के १ राजू ऊपर पूर्व पश्चिम में अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल - जगत्पतर - १२०००० ३. लोक के १ राजू ऊपर दक्षिणोत्तर में अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल -- जगत्प्रतर ४ ५५२०००० ४. ७वीं पृथ्वी से मध्यलोक तक पूर्व प० अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल - जगत्प्रतर x २४ ५. ७वीं पृथ्वी से मध्यलोक तक दक्षिणात्तर में अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल - जगत्तर X ६० ६. ऊर्ध्वलोक के चार पाच भागों का पूर्व प० में अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल - जगत्प्रतर ४ २५ ७. ऊबलोक के चार पाश्र्व भागों का दक्षिणोत्तर में अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल- जगतप्रतर ४ १२ ८ लोक के अग्न माग पर वातवलयों से अवरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल - जगत्प्रतर x ३०३ ३२० यहाँ लोक के अग्रभाग के क्षेत्रफल को छोड़कर शेष समस्त क्षेत्रफलों का योग निम्नप्रकार है: यहाँ पर जगतप्रतर का चिन्ह 'ज' है। अतः न x ६०००० + 5 x 3g: + ज x ५५3830 + ज x २४ + x 2 + ज x २८ + x १२ का ममच्छेद विधान द्वारा मिलाने के लिए जही भागहार नहीं है। वहाँ ७ के घन ( ३४३ ) से, जहाँ भागहार ७ है, वहाँ ७ के वर्ग (४६ ) से, जही भागहार ३४३ है, वह१ से, और जहाँ भागहार ४६ है यहाँ ७ से गुणा करना चाहिए। इस समच्छेद विधान में जिस गुणकार के गुणा करने पर हारों को समानता होती है, उसी गुणकार से अंशों में गुणा करना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया से :-- जx (२०४११०० + ५६१० + ५५३१११° + + + + ) = ज - १२९१४१५२ क्षेत्रफल प्राप्त होता है। अथवा - जx { १०० + १२३००० + १५३११०० + Y+ + ३ + ) - २०५८०० ० + ५८८०००० + ५५२०००० - ८२३२ + ४२०० + ६६०४ + ४११६ - ज x ३२888१५२ अर्थात् जगत्प्रतर x तोन करोब बीस लाख छह हजार एक सौ बावन, भाजित तीन सौ वेतालीरा प्राप्त होते हैं । गाथा १३५ में लोक के अग्रभाग पर वायुरुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल जगतार x ३०३ ३२० बतलाया गया है, इसे उपयुक्त क्षेत्रफल में जोड़ देने से सर्व लोक का क्षेत्रफल प्राप्त हो जाता है । जैसे:ज x ३२००६१५२ + ४.३०३ यहाँ पर भागहार ३२० को - से गुणित करने पर २२४० प्राप्त ७४३२०
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy