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निलोकमार
गाथा: १३७-१३
अयोध्द लोकदक्षिणोत्तरचतुःपाश्ववायुफल माह
पंचाहुटिगिरज भूतुंगमुहं बिसत्तजोयणयं । घेहो में उगाणे संपलं दाखवरदो ॥१३७|| पश्चाधचतुर्थंकरज्जवः भूतुङ्गमुवं द्विसप्तयोजनकः ।
वेषः तच्चतुगुणितं क्षेत्रफलं दक्षिणोत्तरतः ।।१३७।। पंवा । पञ्चा५ चतुर्थे ।
क त्रवः स्तुङ्गमुखानि रिसात १४ योजनों देशः तरबगुणित क्षेत्रफलं पक्षिणोत्तरतः मुखमूमोत्यानेलम्यम् ॥१३७॥
दक्षिणोत्तर अपेक्षा अवलोक के चारों पाश्वं भागों के बानवलयों से रुद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल
गाथा:-ब्रह्मस्वर्ग पर ऊर्ध्वलोक ५ राजू चौड़ा है यही भूमि है 1 तियेग्लोक से ब्रह्मस्वर्ग ३३ राजू केंचा है। तियंग्लोक पर कवलोक १ राजू चौड़ा है। यही मुख है। द्विमान अर्थात १४ योजन वेष अर्थात् वातवलयों को मोटाई १४ योजन है। इन चारों का परस्पर गुणा करने से जो लब्ध प्राप्त हो, उसे पुनः ४ से गुणित करने पर अबलोक की दक्षिणोत्तर दोनों दिशाओं के चारों भागों का क्षेत्रफल प्राप्त होता है ।।१३७||
विशेषामे :-ऊध्वंलोक ब्रह्मस्वर्ग के पास ५ राजू चौड़ा है, अर्थात भुमि . राजू है । तियंगलोक पर राजू चौड़ा है अर्थात मुख १ राजू है, इस प्रकार भुमि + मुख ५ : १ = ६ राजू । इसका आधा (x) ३ राजू व्यास हुआ। यही भुना है। राजू को ऊँचाई कोटि है और १४ योजन मोटाई है, अतः x xy = ७ x ७ x ३ वर्ग राजू अथवा ४९ ५३ वर्ग राजू = जगत्पनर x३ यह अर्ध अवलोक की एक दिशा के वातवलयों से भद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल है । जगत्प्रलर x ३ को ४ से गुणा करने पर जगत्प्रतर ४१२ यह पूरगं अवलोक की दोनों दिशाओं में बातबलयों में गत क्षेत्र का क्षेत्रफल प्राप्त होता है। अथ लोकाग्र वायुफलमानयति
वासुदयमुजं रज्जू इमिओयणवीमतिमदखंडेसु । सतितिसदं सेढी फलमीमिपमान्यरि दंडयाऊणं ।।१३८।। ध्यासोदयभुजा रज्जुः एक योजनविशविशाखपढेषु ।
सत्रिविणतं श्रेणिः फलमीपरप्राग्भारीपरि चण्डवायूनाम् ॥१३॥ चालु । व्यासोक्यभुमार * १ एकयोजनविशत्युत्तरत्रिशत ३२० खण्डेषु मत्रित्रिगत ३०३ - परिण ७ एतोषप्रारभारोपरि दशवापूनां फलं । गोसतिलदखण्डेसु सहि तिलव ३४ पित्याप बीजमुच्यते । दण्जीकृततिक्रोश ४.४० एकक्रोश २००० पंचविशत्यधिकचतुशल: शतहीनकोशाम १५७५