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गांधा : १३२-१३३
लोकसामान्याधिकार
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सेढी छरज्ज पोदसजोयणमायामवासमुस्सेहं । पुचबरपासजुगले सचमदो तिरिपलोगोत्ति ||१३२।। श्रेणी षट्रज्जु चतुदर्शयोजनं मायामव्यासोत्से घम् ।
पूर्वापरपावंयुगले सप्तमतः तिर्यग्लोकान्तम् ॥१३२। सेही । भणी ७ ७ षट्रज्जु उ ६ चतुशा १४ पोजनानि मायामयासोरसेषाः पूर्वापरपावंयुगले सप्तमतस्तियंग्लोकपर्यन्त । भुमकोटोत्यादिना हिस्पो भयपाश्वयि हाय संगुष्यानेतग्यम् १३२॥
सप्तम पृथ्वी से मध्यलोक पर्यन्त पूर्व पश्चिम दिशा में वातवलयों का प्रमाण कहते हैं
पापा:-सप्तम पृथ्वी से नियंग्लोकपयंन्त पूर्व पश्चिम पारवंयुगलों में पवनों का आयाम श्रेणी ( ७ राजू ।, यास ( चौड़ाई ) ६ राज़ और उत्सेध । मोटाई ) १४ योजन प्रमाण है ॥१३२॥
विशेषाय :-सप्तम पृथ्वी के पास पवनों को मोटाई १६ योजन (७+५+ ४) और तिर्यग्लोक के पास १२ (५ + ४ + ३ ) योजन है। औसत मोटाई (१६ + १२ = २८:२) १४ योजन प्राप्त ई 1
सप्तम पृथ्वी से तियंग्लोक पर्यन्त पवनों का आयाम ( लम्बाई ) श्रेणी अर्थात् राजू है। जिसे भुत्रा कहते हैं । नोचे से मध्यलोक पर्यन्त ६ राजू व्यास है जिसे कोटि कहते हैं । दोनों वातबलयों का वेध १० योजन है, अत: xxyx (दूना किया )। यहाँ भी ४९ जगत्प्रतर के स्थानीय हैं । अतः _जगत्प्रवर X १४ १५ x २ प्रा. हुआ। नीचे के ७ से ऊपर के १४ को अपवर्तित कर देने पर २ प्राप्त होते हैं अतः जगत्पतर x ६ x २ x २ = जगत्प्रतर x २४ लाध प्राप्त होता है। ... अथ तस्य सिद्धफलमुच्चारयति---
तवादरुद्धखे जोयणचउवीसगुणिदजगपदरं । उभयदिसासंजणिदं गादब्वं गणिदसलेहि ।।१३।। तदातदक्षेत्र योजनचतुर्दिशतिगुणितमगतरम् ।
उभयदिशासज्जातं ज्ञातव्यं गणितकालः ।।१३३॥ म्याद । तदातापमंडावं पोजनधनुर्विशतिगुणितजयघातरं उभयविशालयात माती गणितकुशलः ॥१३३॥
दोनों पात्र भागों का सिफल कहते हैं
पाषा:-उपयुक्त दोनों दिशाओं के वायुक्त क्षेत्र का क्षेत्रफल जगप्रतर x २४ है । ऐसा गरिणत-निशेषज्ञों द्वारा जाना गया है ॥१३॥