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________________ [ ५९ ] ---- पाइ - २ । इस क्षेत्र को बेध से तुका करने पर घनफळ प्राप्त हो जाता है ( गा० १७ ) । गोल गेंद का घनफल, समधनाकार के घनफल का होता है । गा० १६ ) । इसी विषय को ( पृ० २६ से ) वासना द्वारा सिद्ध किया गया है। प्रथम अनवस्था कुण्ड की शिखा का घनफल परिधि के ग्यारहवें भाग को परिषि के छठे भाग के वर्ग से गुणित करने पर प्राप्त होता है ( गा० २२ ) । इसे भी बासना द्वारा सिद्ध किया गया है। इस जम्बूद्वीप सदृश प्रथम अनवस्था कुण्ड को गोल सरसों से शिखाक भरने पर सरसों का प्रमाण – १९६७११२६३८४४१३१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६२६२ अर्थात् छियालीस अंक प्रमाण प्राप्त होता है। इसके बाद जघन्यपरीता संख्यात के प्रमाण की प्राप्ति तक का सम्पूर्ण विषय पृ० ३४ मे ४० तक दृष्टव्य है, यहाँ केवल दृष्टांत दर्शाया जा रहा है। मानलो- प्रथम अनवस्था कुछ ४६ पंक प्रमाण संख्या के स्थानीय ) १० सरसों से भरा था, अतः बढ़ते हुए व्यास के साथ १० अनवस्था कुण्डों के बन जाने पर एक बार शलाका कुण्ड भरेगा तब एक सरसों का दाना प्रतिशलाका कुण्ड में डाला जाएगा। इसी प्रकार वृद्धिगत व्यास के साथ १० का वर्ग अर्थात् १०० अनवस्था कुण्डों के बन जाने पर १० बार शलाका कुण्ड भरेगा तब एक बार प्रतिशलाका कुण्ड भरेगा तब महाशलाका कुण्ड में डाला जाएगा। इसी प्रकार बढ़ते हुए व्यास के साथ १० के धन अर्थात् १००० अनवस्था कुम्हों के बन जाने पर १० के वर्ग अर्थात् १०० बार शलाका प्रतिशलाका कुण्ड भरेगा और तब एक बार नहाया कुम्हरे कुण्ड में शिक्षा सहित गोल सरसों की जितनी संख्या प्राप्त होती है वही संख्या जघन्यपरीता संख्यात की है, और उसमें से एक अंक कम कर देने पर उत्कृष्ट संख्या का प्रमाण प्राप्त होता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी आगे के मूल भेद के जघन्य भेदों में से एक घटा देने पर पिछले मूल भेद का उत्कृष्ट भेद प्राप्त हो जाता है, तथा जघन्थ और उत्कृष्ट भेदों के बीच के सभी भेद मध्यम कहलाते हैं, अतः जघन्य का स्वरूप ही लिखा जाता है । दाना कुण्ड भरेगा तब १० वाद प्रकार इस अन्तिम अनवस्था ए अध्यास अर्थात् २ अर्धव्यास २ व्यास पाइ= अर्धव्यास का वर्ग yo जघन्ययुक्तासंख्यातः - जघन्यपरीता संख्यात का विरलन कर प्रत्येक एक एक अंक के ऊपर जघन्यपरीतासंरूपात हो देय देकर परस्पर गुणा करने से जो लध उत्पन्न होता है वही जधन्ययुक्तःसंख्यात की संख्या आवली सहा है। अर्थात् जधन्ययुक्तासंख्यात की जितनी संख्या है उतने ही समयों की एक मावली होती है । जघम्ययुक्तासंख्यात अर्थात् आवली का वर्ग करने पर जघन्य असंख्याता संख्यात का प्रमाण प्राप्त होता है । जघन्य असंख्याता संख्यात राशि के शलाकात्रय निष्ठापन ( पृ० ४३ ) की समाप्ति होने पर जो मध्यम असंख्यातासल्यात राशि उत्पन्न हो उस महाराशि में धर्मद्रव्य के असंख्यात प्रदेश अधर्मद्रव्य के असंख्यात प्रदेश, एक जोव के असंख्यात प्रदेश, चोक के पाट प्रदेश लोक से असंख्यात गुणा अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कायिक जीवों का प्रमाण और असं लोक प्रमाण प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों का प्रमाण मिलाने से जो राशि उत्पन्न
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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