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गाथा: ११५ लोकमामान्याधिकार
१२८ और एवं क को उलट कर च की दाई मोर स्थापन करने से ७ राज ऊँचा और २ राज चौड़ा आयतक्षेत्र बन जाता है। इसको उपयुक्त दोनों अर्धस्तम्भों ( अ ब ) के बीच में रखने से अर्धस्तम्भाकार बन जाता है; क्योंकि 'अ' 'ब' अर्धस्तम्भ है । अयांत सम्भस्वरूप लोक नाड़ो के अर्धा भाग हैं । जैसे:--
क्षेत्रफल :- 'म' एवं 'छ' दोनों अर्षस्तम्भों का क्षेत्रफल :- राजू ऊंचाई : राजू चोड़ाई 11 :/= राजू एक अर्धस्तम्भ का क्षेत्र है। x =७ वर्ग राजू क्षेत्रफल दोनो अस्तिम्भो का हुआ । आयताकार क्षेत्र ७ राजू ऊंचा और २ राजू चौड़ा है । अतः ७ - २ = १४ वर्ग गज क्षेत्रफल हुआ। १४ वर्ग राजू +
७ वर्ग राजू = २१ वर्ग राज अस्तिम्भ ऊर्ध्व र
लोक का क्षेत्रफर प्राप्त हुआ । म्तम्भ क्षेत्रफल :---
ऊध्यलोक मध्य में ५ गज चौड़ा है। जिसमें एक गण चोडी त्रस नाड़ी है, इस त्रस नाही के दोना और दो दो रान क्षेत्र अवशेष रहता है। अस नाही में दोनों और एक एक राजू हट कर कम्यअध: : राज लम्बी रेखा द्वारा खपड करने पर दोनों ओर दो दा लण्ड हो जाते हैं। इसमें में बाह्य की ओर बाले प्रत्येक खण्ड को मध्य में पूर्व-पश्चिम रेखा द्वारा खण्ड करने से दो दो खण्ठ हो जाते हैं । यथा :
स्त्रिनं.
निन
खंडन-२
बंडन.२
खंडन
F
N
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इस उपयुक्त चित्र नं. २ के अनुसार प्रम नाहो को लम्भ के मध्य भाग रूप से स्थापन कर इसके दोनों पावों में दोनों अन्नरङ्ग बण्ड नं.१ व २ को स्थापन करना चाहिये। बस नं. १ के
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