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गाषा: ११४
लोकसामान्याधिकार एक रज्जुपर्यन्ते स्फेटयेत् । तरा तसवानिरहिता तत्र तत्र प्रायतिभवेत् ५, ३ । अवलोकाचयानयने मुख सुम्योः ५ विवोधे ५ सति ४ पाचावर्षचतुषस्य तुमचये ४ द्वितीयास्य * कियांश्चय इति सम्पास्यापवर्म गुणितराशौ १३ एकरज्जु १ समामटेन मेलने कृते सत्यद्वितीयस्य प्रथमचयस्तस्मिश्वये प्रामसमय ३ मेलने कृ उपरितना रितीपचयो भवति । पर्भवतुर्थस्य चतुश्चये ४ बलस्य ३ किमिति सम्पास्यापपर्य तरप्राक्तनबमे मेलयेत तबुपरितनमयः स्यात् । उपग्लिनोलोकहान्यानयनेऽपि प्रर्षचतुर्थय २ अतुतिौ ४ बलोवपस्य३ किमिति सम्पास्यागतहानि प्राक्तनवलचये ५ स्फेटयेता एवं सति उपरितनवलहानिफलं स्यात् । एवमुध्वंबलवुष्यहान्यानयोऽपि पूर्वपूर्वहानिफले . चतुः सप्तम हानिस्फेटने २७ सत्तडानिरहितायतिर्भवति २३ ।। बलोदयस्य एतावदानी : एकोक्यस्य १ किमिति सम्पात्य षष्ठलहामिफले ३७ स्फेटने एकरज्जुफलं स्यात् । प्रघोलोकक्षेत्रफलानयने मुखं १ भूमि ७ योग : वले ४ प ७ गुणिते २८ क्षेत्रफलं स्यात् । तदेव' वेधन ७ गुणितं घनफलं १९६ स्थात् ॥११४॥
हानि और स्ल के साधने का विधान कहते हैं :
मायार्थ :- मुख और भूमि में जिमका प्रमाण अधिक हो उसमें से होन प्रमाण को घटाकर ऊंचाई ( उदय ) का भाग देने से भूमि मौर मुख की हानि तथा चय प्राप्त होता है । भूमि और मुख के योग को आधा कर पद ( अचाई ) से गुणा करने पर क्षेत्रफल की प्राप्ति होती है, तथा उसी क्षेत्रफल में वेध का गुणा करने से घनफल होना है ॥११४।।
विशेषाय :-मात राजू भूमि में से एक राज मुख घटाने पर (५ -१ = ६ ) छह राजू अवशेष रहा । यतः ७ राज ऊंचाई पर ६ राज घटते हैं, तो एक राज ऊंचाई पर कितना घटेगा ? ऐसा
राशिक करने से हानि का प्रमाण राज आता है। अतः प्रत्येक एक राज ऊपर जाने पर छह राज़ का सातवाँ माग घट जायगा । इसको सामच्छेद ( लघुत्तम ) विधान से घटाने पर ४३ राजू के ७वें भाग प्रमाणा व्यास रहेगा । जैसे :-::-: = ! राजू शेष रहा । अर्थात् सप्तम पृथ्वी के समीप पूर्व पश्चिम व्यास * गन प्राप्त होगा। इसी प्रकार प्रत्येक एक राज पर राजू घटा देने से :-छठवीं पृथ्वी के समीप का व्यास राजू , पाँचत्री पृथिवी के समीप : राज , चौथी पृथिवी के समीप २० तोमरी पृथियी के समीप - १ राजू , दूसरी पृथ्वी के समोप का व्यास राजू , तथा पहिलो पृथ्वी के अन्न में अति मध्य लोक के समीप (१) राज प्रमागा क्याम प्रा होगा । अप्रिमागा ऊध्यलोक का चय निकालने के लिये मध्य लोक के समीप मुख एक राज , ब्रह्म लोक के समीप भूमि ५ राज़ है, अतः भूमि ५ – १ राज मुख = ४ राज अवशेष रहा। मध्यलोक से ब्रह्मलोक साढ़े तीन राज को ऊंचाई पर है । और मौधौ युगल १ राजू की 'चाई पर है। : ३१ रा. की ऊंचाई पर ४ रा० को वृद्धि
१ एतदेव (प.)।