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गाश:८५-८७
लोकसामान्याधिकार क्षेत्र की अच्छे दशलाकाए प्राप्त होती हैं। अच्छद राशि से मसंख्यात्तवर्गस्थान ऊपर जाकर उसी क्षेत्र का प्रथम वर्गमूल प्राप्त होता है। उस प्रथम वर्गमूल का एक वार वर्ग करने पर सर्वावधि के विषय भूत उत्कृष्ट क्षेत्र [ = ] के प्रदेशों का प्रमाण प्राप्त होता है, जो असंख्यात लोक प्रमाण है। यद्यपि अवधिज्ञान रूपी पदार्थ को जानता है और रूपी पदार्थ लोक [ :- ] के बाहर नहीं हैं, अत: सदपिकान का लेस लोक पाय है । तथापि शाक्ति अपेक्षा असंख्यात लोक प्रमाण क्षेत्र कहा गया है। (सर्वावधिज्ञान की योग्यता मात्र लोकाकाश के ज्ञेयों को जानने की ही हो, ऐसा नहीं है, किन्तु यदि असंख्यात लोक प्रमाण क्षेत्र में अवधिज्ञान का विषयभूत ज्ञेय होता तो सर्वावधि उसे भी जान लेता. ऐसी शक्ति सविधिज्ञान में है )।
वासलागसिदयं वचो लिदिधपच्चयट्ठाणा । वगासलादीरसबंधात्रमाणाण ठाणाणि ।।८।। वासलागपहुदी णिगोदजीवाण कायवरमंखा । घग्गसलामादितयं गियोदकायट्टिदी होदि ॥८६॥ नतो असंखलोगं कदिठाणं चडिय वग्गसलतिदयं । दिस्संति सबजेट्ठा जोगस्मविभागपडिछेदा ||८७|| वर्गशलाकात्रितयं ततः स्थितिबन्धप्रत्ययस्थानानि । वगंशलादिरसबन्धाध्यवसानानां स्थानानि ।।५।। वगंशलाकाप्रभति निगोदजीवानां कायवरसंख्या। वर्गशलाकादित्रयं निगोदकायस्थितिर्भवति ॥८६|| ततो असंख्यलोकं कृतिस्थानं चटित्वा वर्गालात्रितयम् ।
श्यन्ते सर्वज्येष्ठा योगस्याविभागप्रतिच्छेदाः ।।७।। अगसला । ततोऽसंख्यासस्थानानि गत्वा वर्गशलाकाततोऽसल्यासस्थामानि पश्व घन्छवाहतोऽसंख्यातत्यानानि गरदा प्रयममूलं, तस्मिन् एकवार गिते जनावरणाविकर्मणां स्थितिबन्धकारमाकवायपरिणामस्पानास्युत्पद्यन्ते । तारिणामसंख्या इत्ययं । ततोऽसंहपातस्यानानि गत्या वर्गशलाकातितोऽसंखपातस्थामानि गत्वा प्रदन्छे रास्ततोऽसंख्यातापानानि गत्या प्रथममूलं तस्मिन्नेकवार गिते सति सामावरणानिकर्म तोवाविशक्तिलम परसबन्धकारणकषायपरिणामस्थानानि उत्पधन्ते ॥५॥
__ततोऽसंड्यासस्थानानि : गतवा वर्गशलाकास्ततोऽसंस्थातस्थानानि गत्वार्धच्छदात्ततो. ऽसंस्पातस्यानानि गरमा प्रथममूलं तस्मिन्ने वारं वगिते निगोदजोबाना सवंशरीराणामुत्कृष्ट संख्यो
१. असंख्यातवर्गस्थानानि (५०)