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________________ गाथा :३४ लोकसामान्याधिकार क्षेत्र की वर्गशलाका, अपच्छेद व प्रथमवर्गमूल प्राप्त होता है; जिसका एक बार वर्ग करने पर अवधिज्ञान के उत्कृष्ट क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त होता है ।।८३-८४॥ विशेषार्थ :-द्विरूपवर्गधारा में जो राशियां वर्गरूप हैं, उन राशियों का धनाधन ही इस धारा में प्राप्त होता है । धन के धन को हो घनाघन कहते हैं । जैसे:-द्विरूपवर्गधारा का प्रथम स्थान २ है । इस दो का धन (२४२४२) ही द्विरूपधनधाराका प्रथम स्थान ८ है, और इम ८ का घन (८४८४८) ही द्विरूपचनावन धाराका प्रथम स्थान ५१२ है। अर्थात् दो का घनाघन (२४२x२x२x२x२x २४२४२१ ५१२ है, जो द्विरूपच नाघन धाराका प्रथम स्थान है । इसी ५१२ का वर्ग (५१२४ ५१२) = २६२१४४ द्विरूपघनाधन धारा का दूसरा स्थान है, जो द्विरूपधन धारा के दूसरे स्थान ६४ के घनस्वरूप है और द्विरूपवधिाराके दूसरे स्थान ४ के घनाघन (४४४४४४४xxxxxx४४४ ) स्वरूप है। अर्थात २६२१४८ द्विरूपधनधाराके दूसरे स्थान ६४ का धन है और द्विरूपवर्गधाराके दूसरे स्थान ४ का धनाधन है। इससे ( २६२१४४ ) असंख्यात स्थान आगे जाकर लोकाफाश के प्रदेशों के प्रमाण स्वरूप लोक उत्पन्न होता है। इस लोक की वर्गशलाकादि इस घारा में नहीं आती अतः नहीं कही गई हैं, ऐसा जानना चाहिए। लोक के प्रमाण से असंख्यात स्थान आगे जाकर गुणकारशलाका राशि उत्पन्न होती है। शाङ्का:-गुरणकारशलाका किसे कहते हैं ? समाधान :-जगमणी के घन स्वरूप लोक को शलाका, विरलन और देय रूप से तीन जगह स्थापन करना चाहिए । लोक स्वरूप विरलन राशि का एक एक विरल न कर प्रत्येक एक अके ऊपर लोक देयरूप देकर परस्पर गुगणा कर देना चाहिए। यहाँ एक बार गुणा हुआ है अतः लोक स्वरूप शलाका राशिमें से एक अंक कम कर देना चाहिए। यहाँ गुरणकार शलाकाएं एक कम लोक प्रमाण होती हैं। [ यहाँ पर गुणकारशलाका राशि का प्रमाण एक कम लोकमात्र इसलिए है कि प्रथम देयारूप लोक को दूसरे देवरूप लोकसे गुणा करने पर एक गुणकार शलाका होती है। तीसरे देय रूप लोक से गुणा करने पर दूसरी गुणकार शलाका उत्पन्न होती है जो तीन से एक कम है। इमोप्रकार क्रमशः गुरिणत करते हुए अन्तिम देयम्पलोकसे गुगा करने पर एक कम लोक प्रमाण गुणकार शलाकाएं होती हैं। जैसे - मान लीजिए :- अङ्कसंदृष्टिमें लोक का प्रमाण ४ है, अतः शलाका राशि ४, घिरलन राशि ४ और देय राशि ४, इमप्रकार तीन जगह स्थापन किया । विरलान राशिका बिरसन कर उसके ऊपर देय राणि देय देकर परस्पर गुणा करने स ( १ १ -२५६ ) एक वार गुणा हुआ अप्त: शलाका राशि ४ मे से एक अङ्क घटा (४-१-३) दिया । यहाँ पर लोकस्वरूप चार का गुणा ३ वार ( xxxx४४४ ) ही हुआ है। अर्थात् ४x४=१६ एक बार, १६४४-६४ दूसरी बार और ६४४१=२५६ मह तीसरी बार गुणा हुआ, अतः गुणकार शलाकाएं एक कम लोक मात्र कही गई हैं। ]
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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