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________________ ५६ त्रिलोकसार गाथा : ६१ केवलज्ञानमात्रं स्यात् । रु रहित सबंधाविति प्राह्म ं । प्रस्वःस्थान प्रमाणं "काकाशगोल कश्यायेन" विधनपदं केवलं धनस्थानन्यू२, ३, ४, ५, ६, ७, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६ ॥ ६१ ॥ अव गाथा के पूर्वार्ध में केवलज्ञान का अर्धभाग घन रूप ही होता है, इसको दर्शाते हुए उत्तरार्ध में अघन धारा का स्वरूप कहते हैं। : गावार्थ:- द्विरूपवगंधारा में जिस वर्ग स्थान की वर्गशलाकाराशि सम होती है उस वर्ग - स्थान का अर्थ भाग नियम से घन रूप ही होता है तथा इसी द्विरूपवगंधारा में जिस वर्गस्थान की वर्गशलाकाएं विषम होती हैं उस राशि का चौथाई भाग घनरूप होता है। सर्व धारा में से घनधारा के स्थानों को कम कर देने पर केवलज्ञान पर्यन्त समस्त स्थान अघनधारा स्वरूप ही होते हैं ॥ ६१ ॥ 67 विशेषाचं : - द्विरूपवर्गधारा में जिस वर्ग स्थान (१६, ६५५३६, एकट्टो ) की वर्गशलाकाएँ" सम (२, ४, ६, ८ ) होती हैं उसका भाग नियम से घनरूप होता है। जैसे- द्विरुपवर्गधारा का द्वितीय स्थान १६ और चतुर्थ स्थान ६५५३६ है जिसकी वर्गशलाकाएं क्रमशः २ और ४ है जो समरूप ही हैं, अतः १६ का अर्धभाग ८ दो के छन ( २२x२ ) स्वरूप है और ६५५३६ का अर्धभाग ३२७६= बत्तीस ( ३२ ) के घन ( ३२४३२४३२ ) स्वरूप है । इसी प्रकार द्विरूपवर्गधारा में जिस वर्ग स्थान ( ४, २५६, बादाल ) की वर्गशलाकाए विषम ( १, ३, ५ ) होती हैं, उस वर्गस्यान का चतुर्थ भाग नियम से घनरूप ही होता है । जैसे :- द्विरूपवर्गधारा के प्रथम स्थान ४ ओर तृतीय स्थान २५६ की वर्गशलाकाऍ १ और ३ हैं जो विषम है, अतः प्रथम स्थान ४ का चौथाई (४) = १ प्राप्त हुआ जो एक के घन स्वरूप है और तृतीय स्थान २५६ का चौथाई ( १७ ) = ६४ प्राप्त हुआ जो ४ के घन स्वरूप है । उपर्युक्त न्यायानुसार केवलज्ञान की वर्गशलाकाएँ सम होने से केवलज्ञान का अर्थ भाग घनरूप ही होता है, यह सिद्ध हुआ । शंका :- केवलज्ञान की वर्गशलाकाओं का सममता कैसे जाना जाता है ? समाधान :- केवलज्ञान की वर्गालाकाएं द्विरूपवर्गधारा में ही उत्पन्न होती हैं, अतः सम रूप हैं । शंका :- केवलज्ञान को वर्गशलाकाएं द्विरूपवर्गधारा में ही उत्पन्न होती हैं यह कैसे ज्ञात हो १ समाधान :- आगे कही जाने वाली "अव राखाइयलद्धीवासलागा तदो सगद्धछिदि" गाथा ७१ से जाना जाता है । अर्थात् द्विरूपवर्गधारा में जो राशियां उत्पन्न होती हैं वे समरूप ही होती हैं, और केवलज्ञान की वर्गशलाकाएं द्विरूपवर्गधारा में उत्पन्न हुई हैं अतः समरूप हैं। इसीलिये केवलज्ञान के अविभागप्रतिच्छेदों का अर्धभाग घन स्वरूप है । अघन धारा की सम्पूर्ण प्रक्रिया सबंधारा सहा है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सबंधारा के स्थानों में से घनधारा के स्थान घटा देने पर शेष समस्त स्थान अघनधारा रूप हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिए। इन स्थानों का प्रमाण 'काकाश्च गोलक' न्यायानुसार है । अर्थात् जो स्थान घन स्वरूप हैं वे धन रूप ही हैं, अघन रूप नहीं और जो स्थान अघन स्वरूप हैं, वे
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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