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दोडुय्य कवि दोड्डय्यने 'भुजबलिचरितम्' नामक एक ऐतिहासिक खण्डकाव्यको रचना की है । ये आत्रेय गोत्रीय विप्रोत्तम और जैन धर्मावलम्बी थे । ये पिरियपट्टणकै निवासी करणिकतिलक देवप्यके पुत्र थे | इनके गुरुका नाम पंडित मुनि था । कविने अपना परिचय देते हुए हिस्टा है.--
आदिब्रह्मविनिर्मितामलमहावंशाब्धिचन्द्रायमा
नायोद्भवविप्रगोत्रतिलकः श्रीजनविप्रोत्तमः । दोड्ड ट्यः सुगुणाकरोऽस्ति पिरिराजाख्यानसत्पत्तने,
तेनासी जिनगोम्मटेशचरितं भक्त्या मुदा निर्मितम् || स्थितिकाल
थी पं० के० भुजबलि शास्त्रीने कविका समय १६वीं शताब्दी माना है । भाषा और शैलीकी दुष्टिसे भी इस कविका समय १६वीं शतीके आसपास प्रतीत होता है। रचना और काव्यप्रतिभा
कविकी एक ही रचना 'भुजबलिचरितम्' उपलब्ध है । यह रचना जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १०, किरण २ में प्रकाशित है । “भुजबलिचरित'का नाम 'भुजबलिशतकम्' भी है। इस काव्यमें मैसूर राज्यान्तर्गत श्रवणबेलगोलस्थ प्रसिद्ध अलौकिक एवं दिव्य गोम्मटस्वामीको मूर्तिका इतिहास वर्णित है । कविने चरित आरम्भ करते ही रूपक-अलंकार द्वारा प्रशस्त भुजबालचरितको प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा की है।
श्रीमोक्षलक्ष्मीमुखपद्मसूर्य नाभेयपुत्रं वरदोबलीशम् ।
नत्वादिकाम भरतानुजातं तस्य प्रशस्तां सुकथां प्रवक्ष्ये ।। १ ।। कविने प्रस्तुत पद्यमें नाभेयपुत्र-भुजबलिको मोक्षलक्ष्मी मुस्वपक्षको विकसित करनेवाला सूर्य कहा है | इस सन्दर्भ में उपमेय और उपमानके साधम्यका पूरा विस्तार पाया जाता है | भाभेयपुत्रमें सूर्यं साधर्म्य न होकर ताप्य बन गया है । अतः यहाँ ताद्प्यप्रतीतिजन्य चमत्कार पाया जाता है ।
कतिपय पद्योंको पढ़नेसे कालिदासकी रचनाओंको स्मृति हो आती है। कुमारसम्भवके "अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा" १ का स्पष्ट प्रभाव निम्नलिखित पचपर वर्तमान है
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ७५