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मेधाविनामा निवसन्नहं बुधः
___पूर्ण व्यघां ग्रन्थमिमं तु कात्तिके । चन्द्राब्धिवाणैकमितेऽत्र (१५४१) वत्सरे
कृष्णे त्रयोदश्यहनि स्वशक्तिसः ।। २१ ।। वि० सं० १५४१ कात्तिक कृष्णा त्रयोदशीके दिन धर्मसंग्रहश्रावकाचारको समाप्ति हुई है। इस प्रकार मेधावीने ग्रंथरचनाका समय सूचित कर अपने समयका निर्देश कर दिया है । अतएव कविका समय पिक की १६वीं शती है ।
कविका एक ही ग्रन्थ उपलब्ध है-धर्मसंग्रहश्रावकाचार 1 इस श्रावकाचारमें १० अधिकार हैं । प्रथम अधिकारमें श्रेणिक द्वारा गौतम मणधरसे श्रावकाचार सम्बन्धी प्रश्न पूछना और गौतमका उत्तर देना वर्णित है। इस अधिकारमें प्रधानतः राजगृहके विपुलाचल पर्वत पर तीर्थंकर महावीरके समवशरणका वर्णन आया है और उसका द्वितीय अधिकारमें विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। मानस्संभ, वीथियों, गोपुर, वप्र, प्राकार, तोरण आदि भी इसी अधिकारमें वर्णित है। तृतीय अधिकारमें श्रेणिक महाराजका समवशरण में पहुँचकर अपने कक्षमें बैठना एवं महावीरकी दिव्यध्वनिका खिरना वर्णित है। चतुर्थ अधिकारमें सम्यग्दर्शनका निरूपण आया है । सम्यग्दर्शनको ही धर्मका मूल बतलाया है। जब तक व्यक्तिको आस्था धर्मोन्मुख नहीं होती तब तक वह अपनी आस्माका उत्थान नहीं कर सकता । असः मेधावीने सम्यग्दर्शनके साथ अष्टमूलगुण, द्वादश प्रतिमाएं, सात तत्व, नव पदार्थ आदिका कथन किया है । इसी प्रसंगमें ३६३ मिथ्यावादियोंकी समीक्षा भी की गई है। चतुर्थ अधिकारका ८१वां पद्य आशाधरके सागारधर्मामतके प्रथम अध्यायके १३वें पद्यसे बिल्कुल प्रभावित है । ऐसा प्रतीत होता है कि मेधावीने चतुर्थ अध्यायके ७७, ७८ और ७९वें पद्य भी आशाधरके सागारधर्मामतके अध्ययनके पश्चात् ही लिखे हैं । पंचम अधिकारमें दर्शन-प्रतिमाका वर्णन किया गया है और प्रसंगवश मद्य, मांस और मधुके त्याग पर जोर दिया गया है। नवनीत, पंच उदुम्बरफल, अपक्ष्यभक्षण, द्यूतक्रीडाके त्यागका भी निर्देश किया गया है। षष्ठ अधिकारमें पंचाणवतोंका स्वरूप आया है और सप्तममें सात शीलोंका वर्णन किया है। अष्टम अधिकारमें सामायिकादि दश प्रतिमाओंका वर्णन किया गया है । नवम अधिकारमें ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण और उत्सर्ग इन पांच समितियोंके स्वरूपवर्णनके पश्चात् नैष्ठिक श्रावकके लिए विधेय कर्तव्योपर प्रकाश डाला गया है । इस अधिकारमें संयम, दान, स्वाध्याय मल्लेखनाका भी वर्णन आया है। दशम अधिकारमें विशेष रूपसे समाधिमरणका कथन किया गया है 1 ६८ : तीर्थकार महाबोर और उनकी आचार्य-परम्परा