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निगम कुल कायस्थोंका है। इससे स्पष्ट है कि पं० वामदेव कायस्थ थे । वामदेव प्रतिष्ठादि कर्मकाण्डोंके ज्ञाता और जिनभक्तिमें तत्पर थे ।'
इन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके त्रिलोकसारको देखकर त्रैलोक्यदीपक ग्रंथको रचना की है। इस प्रथम विनामें प्रेरक पुरवाड वंशके कामदेव प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नीका नाम नामदेवी था, जिसने राम-लक्ष्मणके समान जोमन और लक्ष्मण नामक दो पुत्र उत्पन्न किये थे । इनमें जोमनका पुत्र नेमिदेव नामका था, जो गुणभूषण और सम्यक्त्वसे विभूपित था । वह बड़ा उदार, न्यायी और दानी था। कामदेवकी प्रार्थनासे ही त्रैलोक्यदीपकको रचना सम्पन्न हुई है। स्थितिकाल
पं० वामदेवका स्थितिकाल निश्चितरूपसे नहीं बतलाया जा सकता है । लोक्यदीपक ग्रन्थको एक प्राचीन प्रति वि० सं० १४३६में फिरोजशाह तुगलकाके समय योगिनीपुर (दिल्ली) में लिखी गई मिली है। यह प्रति अतिशयक्षेत्र महावीरजीके शास्त्र-भण्डारमें विद्यमान है, जिससे इस ग्रन्थका रचनाकाल वि० सं० १४२६के बाद नहीं हो सकता है। बहुत संभव है कि पं० बामदेव वि० सं० १४३ के आस-पास जीवित रहे हों। अतएव वामदेवका समय वि० को १५वीं शती है। रचनाएँ
पं० वामदेवको दो रचनाएँ 'लोक्यदीपक' और 'भावसंग्रह' उपलब्ध हैं। 'भावसंग्रह' में ७८२ पद्य है। इस ग्रन्थके अन्तमें प्रशस्ति भी दी हुई है । इस प्रशस्तिके आधारगर पं० वामदेवके गुरु मुनि लक्ष्मीचन्द्र थे ।
'भावसंग्रह' की रचना देवसेनके प्राकृत भावसंग्रहके आधारपर ही हुई १. भूया व्यजनस्य विश्वहितः श्रीमूलरांधः श्रिय
यथाभूद्विनयेन्दुर गुतगुणः गच्छीलदुग्धार्णवः । सच्छिष्योजनि भद्रमति मलस्त्रलोकाकोतिः शशी । येनकान्तमहातग: प्रशमितं स्याद्वादविद्याकरः ॥७७९।।
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तच्छिम्यः क्षितिमण्डले विजयते लक्ष्मीन्दुनामा मुनिः ।।७८०।। श्रीमतलार्वज्ञपूजाकरणपरिणतस्तत्वचिन्तारसालो लदमोचन्दांत्रिपद्यमधुकर: श्रीवामदेवः सुधीः । उत्पत्तिर्यस्य जाता शशिविशदकुले नैगमधीविशाले
साऽय जीव्यात्प्रकामं जगति रमलसद्भाकशास्त्रप्रणेता ॥७८१|| ६६ : तानार महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा