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प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि वि० सं० १५११ में श्रावणशुक्ला पूर्णिमा सोमवारके दिन इस ग्रन्थको लिया है
व्यतीते विक्रमादित्ये रुद्रेषु शशिनामनि ।
श्रावणे शुक्लपक्षे च पूर्णिमाचन्द्रवासरे ॥ ५३ ।। कविन नागकुमारचरित यदुवंशी लम्बकंचुक्रगोत्री साहू नल्हूकी प्रेरणासे रचा है। साह नलह चन्द्रपाट या चन्द्रपाड नगरके दत्तपल्लीके निवासी थे । नल्ह साहूके पिताका नाम धनेश्वर या धनपाल था, जो जिनदासके पुत्र थे । जिनेदासके चार पुत्र थे-शिवपाल, जयपाल, धनपाल, धुपाल 1 नल्हू साहूकी माताका नाम लक्षणश्री था। उस समय चौहानवंशी राजा भोजराजके पुत्र माधवचन्द्र राज्य कर रहे थे। धनपाल मन्त्री पदपर प्रतिष्ठित था साहू नल्हूके भाईका नाम उदयसिंह था । साहू नल्हू भी राज्य द्वारा सम्मानित थे । इनकी दो पत्नियां थीं-दुमा और यशोमती । तेजपाल, विजयपाल, चन्दनसिंह और नरसिंह ये चार पुत्र थे । इस प्रकार साहू नल्हू सपरिवार धर्मसाधना करते थे।
नागकुमारचरितकी प्रशस्तिमें साहू नल्हूके समान ही चौहानवंशी राजाओंका परिचय प्राप्त होता है | सारंगदेव और उनके पुत्र अभयपालका निर्देश आया है | अभयपाल का पुत्र रामचन्द्र था, जिसका राज्य वि० सं० १४४८ में विद्यमान था । रामचन्द्रके पुत्र प्रतापचन्द्रके राज्यमें रइधूने ग्रन्थ-रचना की है । प्रतापचन्द्रका दूसरा भाई रणसिंह था। इनका पुत्र भोजराज हुआ। भोजराजकी पत्नीका नाम शीलादेवी था। इसके गर्भसे माधवचन्द्र नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। इस माधवचन्द्रके कनकसिंह और नृसिंह दो भाई थे । माधवचन्द्रके राज्यकाल में ही कवि धर्मधरने नागकुमारचरितकी रचना की है। माधवचन्द्रका राज्यकाल वि० सं० को १६ वीं शती है। अतः कवि धर्मधरका समय नागकुमारकी प्रशस्तिमें उल्लिखित पुष्ट होता है । रचनाएँ
कवि धर्मधरको दो रचनाएँ उल्लिखित मिलती हैं--श्रीपालचरित और नागकुमारचरित | पुण्यपुरुष श्रीपालकी कथा बहुत ही प्रसिद्ध रही है। इस कथाका आधार ग्रहण कर विभिन्न भाषाओंमें काव्य लिखे गये ।
नागकुमार चरितको रचना धर्मधरने अपभ्रंशके महाकवि पुष्पदन्तके 'णायकुमारचरिउ' के आधार पर की है । ग्रन्थके परिच्छेदके अन्तमें पुष्पिकावाक्य निम्न प्रकार मिलता है_ 'इति श्रीनागकुमारकामदेवकथावतारे शुक्लपंचमीवतमाहात्म्ये साधुनल्हूकारापिते पण्डिताशपालात्मजधर्मघरविरचिले श्रेणिकमहाराजसमवसरणप्रवेशवर्णनो नाम प्रथमः परिच्छेद: समाप्तः।' ५८ : तीर्थकर, महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा