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________________ वि० सं० १४६६ तक वर्तमान रहा । अतएव उनके राज्यकालकी सीमा ई० सन् १४०५-१४१५ ई० तक जान पड़ती है । इसके पश्चात् ई० सन् १४२४से पूर्व वीरमदेवके पुत्र गणपतिदेवने राज्यका संचालन किया है। इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि पद्मनाभने ई. सन् १४०५-१४२५ ई० के मध्यमें किसी समय 'यशोधरचरित' की रचना की है। रचना राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतीका जीवन-परिचय इस काव्यम अंकित है। पौराणिक कथानकको लोकप्रिय बनाने की पूरी चेष्टा की गई है । ____ कथावस्तु ९ सर्गों में विभक्त है । नवम सर्गमें अभयचि आदिका स्वगंगमन बताया गया है । कविता प्रौढ है । उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, कायलिंग आदि अलंकारों द्वारा काव्यको पूर्णतया लोकप्रिय बनाया गया है । ज्ञानकोत्ति यति वादिभूषणके शिष्य थे। इन्होंने यशोधरचर्चारितकी रचना नानके भाग्रहसे संस्कृतभाषामें को | नान उस समय बंगालके गवर्नर महाराजा मानसिंहके प्रधान अमात्य थे । कविने सम्मेदशिखरकी यात्रा की है और वहाँ उन्होंने जीर्णोद्धार भी कराया है । ज्ञानकीति बंगालप्रान्तके अकच्छरपुर नामक नगरमें निवास करते थे। यशोधरचरितके अन्तमें लम्बी प्रशस्ति दी गई है, जिससे अवगत होता है कि शाह श्रीनानुने यशोधरचरित लिखाकर भट्टारक श्रीचन्द्रकीतिके शिष्य शुभचन्द्रको भेंट किया था। इस ग्रन्थमें रचनाकाल स्वयं अंकित किया है 'शते षोडशएकोनषष्टिवासरके शुभे । __ माघे शुक्लेऽपि पंचम्यां रचितं भृगुवासरे ॥ ५ ॥ अर्थात् सोलहसी उनसठ (१६५९) में माघ शुक्ल पञ्चमी शुक्रवारको ग्रन्थ समाप्त हुआ । यह काव्य मानसिंहके समयमें लिखा गया है। काव्यके अन्तको प्रशस्ति निम्न प्रकार है__ "इति श्रीयशोधरमहाराजचरिते भट्टारकश्रीवादिभूषणशिष्याचार्यश्रीज्ञानकोत्तिविरचिते राजाधिराजमहाराजमानसिंहप्रधानसाहश्रीनानूनामांकिते भट्टारकधीअभयाच्यादिदीक्षाग्रहणस्वर्गादिप्रासिवर्णनो नाम नवमः सर्गः ॥" ५६ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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