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________________ आशाधरके पाण्डित्यकी प्रशंसा उस समयके सभी भट्टारक विद्वानोंने की है | उदयसेनने आपको "नयविश्वचक्षु' तथा 'कलि-कालिदास' कहा है । मदनकोत्ति यतिपतिने 'प्रज्ञापुञ्ज" कहकर आशाधरकी प्रशंसा की है। स्वयं गृहस्थ रहनेपर भी बड़े-बड़े मुनि और भट्टारकोंने इनका शिष्यत्व स्वीकार किया है । जैन के अतिरिक्त अन्य मतवाले विद्वान् भी आपको विद्वत्तापर मुग्ध थे | मालवानरेश अजुनदेव स्वयं विद्वान और कवि थे। अमरुकशतककी रससञ्जीवनी नामकी एक संस्कृतटीका काव्यमाला में प्रकाशित हुई है । इस टीकामें 'यदुक्तमुपाध्यायेन बालसरस्वत्यपरनाम्ना मदतेन' इस प्रकार लिखकर मदनोपाध्यायके श्लोक उदाहरणस्वरूप उद्धृत किये हैं और भव्यकुमुदचन्द्रिका टीकाको प्रशस्तिके नवम श्लोकके अन्तिम पादकी टीकामें पं० आशावरने 'आपु': प्राप्ताः बालसरस्वति महाकविमदनादय:' लिखा है । इससे स्पष्ट है कि अमरुकशतक में उद्धृत उदाहरणस्वरूप श्लोक आशाघरके शिष्य महाकवि मदनके हैं । इसके अतिरिक्त प्राचीन लेखमालामें अर्जुन वर्मदेवका तीसरा दानपत्र प्रकाशित हुआ, जिसके अन्त में 'रचितमिदं राजगुरुणा मदनेन' लिखा है | अतः यह स्पष्ट है कि आशाधर के शिष्य मदनोपाध्याय, जिनका दूसरा नाम बालसरस्वती था, मालवाघीश महाराज अर्जुनदेवके गुरु थे। अमरुकशतककी टीकामें आये हुए पद्योंसे यह भी ज्ञात होता है कि मदनोपाध्याय का कोई अलंकारग्रन्थ भी था, जो अभी तक अप्राप्त है । - मदनकीत्तिके सिवा आशाधरके अनेक मुनि शिष्य थे । व्याकरण, काव्य न्याय, धर्मशास्त्र आदि विषयोंमें उनकी असाधारण गति थी। बताया हैयो द्राग्व्याकरणाधिपारमनयच्छुश्रूषमाणान कानू षट्तकपरमास्त्रमाप्य न यतः प्रत्ययिनः केऽक्षिपन् । चेयः केऽस्खलितं न येन जिनवाग्दीपं पथि ग्राहिताः पीत्या काव्यसुषां यतश्च रसिकेष्वापुः प्रतिष्ठां न के ॥ ९ ॥ अर्थात् शुश्रूषा करनेवाले शिष्योंमेंसे ऐसे कौन हैं, जिन्हें आशाधरने व्याकरणरूपी समुद्रके पार शीघ्र ही न पहुँचा दिया हो तथा ऐसे कौन हैं, जिन्होंने आशाधरके षट्दर्शनरूपी परमशस्त्रको लेकर अपने प्रतिवादियोंके न जीता हो, तथा ऐसे कौन हैं जो आशाधरसे निर्मल जिनवाणीरूपी दीपक ग्रहण करके १ इत्युदयसेन मुनिना कविसुहृदा योऽभिनन्दितः प्रीत्या । प्रनापुष्जोसीति च योऽभिहितो मदनकी नियतिपतिना ॥ ४२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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