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________________ उनकी पट्ट (गद्दी) रूपी उदयाचलपर उगनेवाले प्रातःकालिक सूर्यके समान, अत्यन्त श्रेष्ठ अन्यमसवादीरूपी हाथियोंके समूहके लिए सिंहस्वरूप, मण्डपगिरि (मांडलगढ़) के मन्त्रवाद समस्यामें चन्द्रमाको पवित्रता प्राप्त करनेवाले, विकट परवादीरूप गोपोंके (अजेय) दुर्गको अपनी प्रखर बुद्धिसे वशमें करनेवाले, भव्यजनरूपी फसलपर अमृत समान वाणीकी वर्षा करनेवाले, देवेन्द्र और नागेन्द्रसे सेवित चरणकमलवाले, मालव भुलतान-मगध-महाराष्ट्र सौराष्ट्रगोड-अंग-बंग-आन्ध्र आदि विविध देशोंके भव्यजनोंको उपदेश देने में निपुण, भूमण्डल भरके आचार्य, गयासुद्दीनकी सभामें सम्मान प्राप्त करनेवाले और श्रीपपावतोदेवीके उपासक श्रीमल्लिभूषण महाभट्टारकके ॥२४॥ तत्पट्टकुमुदवनविकासनशरत्सम्पूर्णचन्द्रानां, जैनेन्द्रकौमारपाणिन्यमरशाकटायनमुग्धबोधादिमहाय्याकरणपरिज्ञानजलप्रवाहप्रक्षालितानेकशिष्यप्रशिष्यशेमुखीसंस्थितशब्दाज्ञानजम्बालानामनेकतपश्चरणकरणसमुत्थकोत्तिकलापलितरूपला. वण्यसोभाग्यभाग्यमण्डितसकलशास्त्रपठनपाठनपण्डितविविधजीर्णनूतनस्फुटितप्रासादविधायक श्रीमञ्जिनेन्द्रचन्द्रबिम्बप्रतिष्ठादिमहामहोत्सवकारकाणां सिंगल(?) तोलवतिलंगकन्नड (?) कर्णाटभोटादिदेशोत्पन्ननरेन्द्रराजाधिराजमहाराजराजराजेश्वरमहामण्डलेश्वरभैरवरायल्लिरायदेवरायबंगरायप्रमुखाष्टादशनरपतिपूजितचरणकमलश्रुतसागरपारंगतवादवादीश्वरराजगुरुवसुन्धराचार्य भट्टारकपदप्राप्तक्षीबीरसेनक्षीविशालकीतिप्रमुखशिष्यवरसमाराधितपादपद्मानां, श्री. मल्लक्ष्मीचन्द्रपरमभट्टारकगुरूणाम् ॥२५।। उनके पट्टरूपी कुमुदबनको विकसित करनेके लिए शरदऋतुके पूर्ण चंद्रमाके समान जैनेन्द्र, कौमार, पाणिनि, अमर, शाकटायन, मुग्धबोध आदि महाव्याकरणके परिज्ञानरूपी जल-प्रवाहसे अनेक शिष्य-प्रशिष्योंकी बुद्धिमें स्थित शब्दसम्बन्धी अज्ञानरूपी पंकको धो देनेवाले, विविध तपस्याओंके द्वारा प्रसारित यशःसमूहवाले और रूपलावण्यसे भूषित तथा सौभाग्यसे मण्डित, सभी शास्त्रोंके पठन-पाठनमें पंडित, अनेक पुराने तथा नये टूटे-फूटे मन्दिरोंके उद्धारक श्रीजिनेन्द्रको प्रतिभा-प्रतिष्ठा आदि बड़े-बड़े उत्सवोंके करनेवाले, तौलवआन्ध्र-कर्णाट-लाट-भोट आदि देशोंके नरेन्द्र-राजाधिराज महाराज-राजराजेश्वरमहामण्डलेश्वर भैरवराय-मल्लिराय-देवराय-बंगराय इत्यादि अठारह राजाओंसे पूजित चरणकमलवाले, शास्त्ररूपी सागरके पारंगत, वादियोंके ईश्वर, राजाओंके गुरु, भूमण्डलके आचार्य, भट्टारकपदको प्राप्त श्रीवीरसेन, श्रीविशालकीर्ति प्रभृति शिष्यों द्वारा आराधित चरणकमलवाले श्रीलक्ष्मीचन्द परम भट्टारकके ॥२५॥ ४३६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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